चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के शाश्वत विद्रोही

कृपाशंकर चैबे  


पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर की ख्याति शाश्वत विद्रोही और जुझारू नेता के रूप में रही है। भारतीय राजनीति को नया मुहावरा देकर ही इस समाजवादी योद्धा ने अपनी अलग छवि बनायी। चन्द्रशेखर भारतीय राजनीति के फक्कड़ कबीर हैं। खरी-खरी कहने वाले। भले जो भी नुकसान उठाना पड़े। प्रखर समाजवादी-राजनीतिक चिंतक के अलावा चन्द्रशेखर समर्थ गद्यकार और पत्रकार भी थे। उनका यह रूप भारतीय राजनीति और समाज पर नियमित रूप से ‘यंग इंडियन’ में छपने वाले उनके संपादकीय अग्रलेखों और भाषणों में देखा जा सकता है। चन्द्रशेखर ने पन्द्रह वर्षों के अंतराल के बाद दोबारा भारत-यात्रा शुरू कर जता दिया कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन का जो सपना गाँध्ाी, लोहिया, जयप्रकाश और आचार्य नरेन्द्र देव ने देखा था, उसे गाँव और गरीबी, समाजवादी संकल्पों और अपने मानवतावादी दृष्टिकोण के जरिए चन्द्रशेखर जी ही साकार कर सकते हैं। श्री चन्द्रशेखर ही देश की जनता को नई दिशा, एक नया विश्वास, प्रेरणा और संबल दे सकते हैं जिनके बल पर यह राष्ट्र अपना खोया हुआ आत्मबल पा सकेगा। जब कारगिल में युद्ध लड़ा गया। भारत में युद्धोन्माद का वातावरण पोखरण विस्फोट के बाद पूरे देश में बनाने की कोशिश हुई और वैसे समय में नौ अगस्त 1998 को दूसरी भारत यात्रा की शुरुआत श्री चन्द्रशेखर ने की। युद्धोन्माद के वातावरण में भी यदि चन्द्रशेखर कहें कि बम नहीं, पीने का पानी चाहिए तो उनका यह कहना बेहद तात्पर्यपूर्ण है। इस समय भी पीने के पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, दलित उत्थान और सांप्रदायिक सद्भाव को कोई राजनेता बुनियादी मुद्दा मानता है तो कहना चाहिए कि इस प्रदूषित राजनीति में भी शुभ मंगलकारी तत्व की तलाश संभव है। संप्रदाय, ध्ार्म, जाति, भाषा के नाम पर समाज को बांटने की ढिठाई के बाद प्रांतीयतावाद सिर उठा रहा था। एक प्रांत से दूसरे प्रांतों के बाशिंदों को जिस तरह निर्लज्जतापूर्वक खदेड़ा जा रहा था, वह सभ्य तरीका नहीं था। इस बर्बर चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के शाश्वत विद्रोही ध् 161 162 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर समय में भी चन्द्रशेखर ने बुनियादी समस्याओं को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। चन्द्रशेखर और उनके भारत यात्रा केन्द्रों में चाहे जितनी मीन मेख निकाली जाए, इनसे गाँध्ाी, आचार्य नरेन्द्र देव, लोहिया, जे.पी. और भारत यात्रा केन्द्रों के संदर्भ में उनका रचनात्मक योगदान खत्म तो नहीं हो जाता। सबसे ज्यादा मीन मेख भुवनेश्वरी के भारत यात्रा केंद्र में निकाली जाती है। भुवनेश्वरी में रेत के टीले समतल किए गए, फलदार वृक्ष लगाए गए, गाँवों के लिए जंगल लगाया गया। भुवनेश्वरी का आश्रम किसी पूँजीपति या उद्योगपति के पैसे से नहीं बना है। भुवनेश्वरी में नर्सरी है, डिस्पेंसरी चल रही है। पड़ोस के गाँव को यह केन्द्र पानी मुहैया कराता है। डेयरी है। इस केन्द्र ने पशुओं की नस्ल सुध्ाारने के लिए जो मवेशी इकट्ठा किया था, उसे पड़ोसी गाँवों को दे दिया। यहाँ के स्त्री निकेतन में महिलाओं को गृह विज्ञान का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश जारी है। हरियाणा के इस केन्द्र ने जो रचनात्मक काम किया, उसका दस फीसदी भी हरियाणा सरकार पानी की तरह रुपया बहाने के बाद भी अमरावली में क्यों नहीं कर सकी? पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के आदिवासी क्षेत्र कांटाडीह में भारत यात्रा केन्द्र द्वारा स्थापित नरेन्द्र देव विद्या निकेतन के कारण ही वहाँ के शताध्ािक छात्र पढ़ पा रहे हैं। भारत यात्रा केन्द्र की बदौलत ही कांटाडीह में एक स्वास्थ्य केन्द्र भी है और वहाँ की ऊसर भूमि, हरी-भरी दिखती है। आदिवासियों के लिए वहाँ केन्द्र ने स्वाभाविक वन सृजन किया है। पुरुलिया का भारत यात्रा केन्द्र (नरेन्द्र देव विद्या निकेतन) इस दृष्टि से अलग महत्व का है कि इसकी स्थापना जनवरी 1991 में भारत यात्रा ट्रस्ट के चेयरमैन चन्द्रशेखर ने अपने प्रध्ाानमंत्रित्व काल में की थी। पुरुलिया केन्द्र के इस स्कूल में नौ कमरे हैं। बांग्ला व अंग्रेजी माध्यम से छात्र यहाँ शिक्षा ले रहे हैं। बड़े-बड़े शहरों-महानगरों के बड़े स्कूलों की तरह सारी सुविध्ााओं से संपन्न स्कूल देहात में भी खोलने के पीछे भारत यात्रा केन्द्र की दृष्टि यह रही है कि देहात की प्रतिभाओं को भी आगे बढ़ने का अवसर मिले। पुरुलिया के केन्द्र में अभी छठी तक की ही पढ़ाई होती है। हर छात्र से तीस रुपये फीस ली जाती है लेकिन यदि किसी छात्र के पास पैसे नहीं है तो उनकी पूरी पढ़ाई (उच्च शिक्षा भी) भोजन, आवास का पूरा जिम्मा भारत यात्रा केन्द्र उठाता है। कांटाडीह में यह अपनी तरह का पहला स्कूल है जो बगैर किसी सरकारी मदद से चलता है। स्कूल तक बच्चों के आने-जाने की यातायात की सुविध्ाा है। किताबी ज्ञान के अलावा संगीत, खेलकूद, कंप्यूटर शिक्षा पर भी यहाँ समान रूप से ध्यान दिया जाता है। यहाँ की पढ़ाई का आसपास के गाँवों में व्यापक प्रभाव है। स्कूल के प्रति स्थानीय लोगों का आकर्षण तेजी से बढ़ा है। पुरुलिया केन्द्र के आस पास कई पेड़ लगाए गए। उनकी जगह अब हरबल के पेड लगाने की बात है। पुरुलिया में भारत यात्रा केन्द्र की स्थापना में बेनी प्रसाद माध्ाव, वीरेन्द्र सिंह, एच.एन. शर्मा और कृष्ण गोपाल सिन्हा का योगदान रहा है। पुरुलिया समेत अन्य भारत यात्रा केन्द्रों की स्थापना की पृष्ठभूमि का एक इतिहास है। सन् तिरासी की चर्चित पदयात्रा के दौरान चन्द्रशेखर को जगह-जगह जो राशि भेंट की गई थी, उससे उन्होंने भारत यात्रा ट्रस्ट बनाया था। जिस देश में सिर्फ चुनाव के समय जनता के बीच नेताओं के जाने की परंपरा रही हो, चन्द्रशेखर ने छह जनवरी सन् तिरासी को कन्याकुमारी से पदयात्रा शुरू की थी। गाँवों के लोग पदयात्रियों के स्वागत के लिए उमड़ पड़े थे। गाँव वाले गदगद थे, ‘कोई तो हमारे दरवाजे हमारी सुध्ाि लेने आया है।’ वह पदयात्रा सन् तिरासी में ही पचीस जून को राजघाट में गाँध्ाी की समाध्ाि पर जाकर खत्म हुई थी। उस यात्रा के दौरान आत्मनिर्भरता, राजनीतिक स्थिरता, गरीबी मिटाने की चुनौती, सांप्रदायिक सद्भाव और सरकार की मितव्ययिता पर चन्द्रशेखर ने जोर दिया था। चन्द्रशेखर की 4260 किलोमीटर की पदयात्रा गाँध्ाी और विनोबा भावे की पदयात्राओं से कहीं लंबी थी। चन्द्रशेखर ने अपनी पदयात्रा को तब प्रतिरोध्ा का आन्दोलन कहा था। मकसद था जन-जन के बीच जाकर ग्रामीणों की समस्याओं को समझना। यात्रा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों के गाँवों की पीड़ा, बेबसी देखकर चन्द्रशेखर मर्माहत हो उठे। यह स्वाभाविक था। जिस देश के लोगों की वहाँ की व्यवस्था पीने के पानी की सुविध्ाा तक न दे सके, वहाँ और क्या उम्मीद की जा सकती है? चन्द्रशेखर ने यात्रा के दौरान महसूस किया था कि मूलभूत सुविध्ााओं से वंचित होने के बावजूद लोगों ने कितनी सहनशक्ति का परिचय दिया है। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में गुणात्मक परिवर्तन की माँग करते हुए कहा था कि यदि मौजूदा व्यवस्था मौलिक सुविधाएं चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के शाश्वत विद्रोही ध् 163 164 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर भी न दे सकी तो उसकी क्या जरूरत? भारत यात्रा के समापन पर चन्द्रशेखर ने पाँच सूत्रीय कार्यक्रम का एलान किया था, हर गाँव में तीन साल के भीतर पीने का पानी उपलब्ध्ा कराया जाए। हर गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविध्ााओं (खासकर गर्भवती माताओं के लिए) का इंतजाम हो, बच्चों के लिए शिक्षा की समुचित व्यवस्था करने के लिए समाज में जागृति लाना ताकि समाज स्कूल खोलने के लिए बाध्य हो, सांप्रदायिक सद्भाव और दबे हुए, कमजोर आदिवासियों, अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाना। इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी हर गाँव में कम से कम तीन शिक्षित लोग अपने ऊपर लें, यह चन्द्रशेखर की अपील थी। इन्हीं कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने के लिए उन्होंने भारत यात्रा ट्रस्ट बनाया था और भिन्न राज्यों के अत्यंत पिछड़े गाँवों में भारत यात्रा केन्द्र खोलना शुरू किया था। उनकी पदयात्रा ने सिद्ध किया था कि वह राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया थी। उसका मकसद रचनात्मक कार्यों के माध्यम से समाज में यह चेतना लाना था कि सरकार की मदद के बगैर भी जनशक्ति से रचनात्मक कार्य संभव है। भारत यात्रा केन्द्रों से लोगों में विश्वास जगा कि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में वे भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। लोगों के आत्मविश्वास को रचनात्मक कार्यों से जोड़ने के मकसद से बने भारत यात्रा केन्द्रों ने आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी, शिक्षा, पौष्टिक आहार, स्वास्थ्य सुविध्ााओं के इंतजाम करने के अलावा अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और दूसरे कमजोर वर्गों की समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न भी किया। भारत यात्रा केन्द्रों के जरिए रचनात्मक कार्यों में चन्द्रशेखर लगे रहे। सभी भारत यात्रा केन्द्र पिछड़े या आदिवासी गाँवों में हैं। गाँव ही चन्द्रशेखर की शक्ति के स्रोत थे। गाँवों में खुले भारत यात्रा केन्द्र सही मायने में सामाजिक चेतना के केन्द्र हैं। सभी के सभी भारत यात्रा केन्द्र वस्तुतः नई समाज रचना की दिशा में हुए कार्य के सबूत हैं। इन केन्द्रों की वित्तीय व्यवस्था भारत यात्रा ट्रस्ट संभालता है। पुरुलिया केन्द्र पर हर माह पच्चीस हजार रुपए खर्च किए जाते हैं। केन्द्र प्रभारी कृष्ण गोपाल सिन्हा पाई-पाई का हिसाब रखते हैं। हर केन्द्र की तरह यहाँ भी क्षेत्र में हरियाली के लिए वन सृजन किया गया है। स्कूल परिसर में ही बगीचा भी है। पुरुलिया व दूसरे भारत यात्रा केन्द्रों की लक्ष्य प्राप्ति के बारे में बीस जुलाई 1998 की सुबह कलकत्ता (हावड़ा) से पुरुलिया जाते समय ट्रेन में चन्द्रशेखर से इस संवाददाता की लम्बी बातचीत हुई थी। उस बातचीत में उन्होंने जो कहा था, उसका सारांशः सन् तिरासी की भारत यात्रा के दौरान हमने गाँव-गाँव जाकर लोगों की स्थिति देखी थी। वह यात्रा भारत को समझने की प्रक्रिया थी। तब देखा था कि गाँवों में पेय जल का कितना संकट है? आदिवासी बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं। स्वास्थ्य सुविध्ााएँ नहीं। कई क्षेत्रों में स्कूल नहीं। ध्ार्म और जाति के नाम पर अंतर किया जाता है। आज जब पीछे मुड़कर देखता हँू तो अब भी डेढ़ लाख गाँवों में पेयजल की सुविध्ाा नहीं है। देश की अस्सी फीसदी आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। भारत यात्रा के बाद पाँच कार्यक्रमों का हमने संकल्प किया था। उनके क्रियान्वयन के लिए अपनी शक्ति, क्षमता के बल पर कुछ सुदूर गाँवों में भारत यात्रा केन्द्रों की स्थापना की। सरकार करे या न करे हमने पिछड़े, गरीब, आदिवासी इलाकों में केन्द्र खोले। राजनीतिक कार्यों के लिए नहीं, गाँध्ाी ने जिन रचनात्मक कार्यों की नींव डाली थी, उसी परंपरा में हमने अपनी सामथ्र्य भर कोशिश की। इतने बड़े देश में मात्र दस-पंद्रह स्थानों पर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, कृषि के क्षेत्र में कुछ काम हुआ। भारत यात्रा के 15 वर्ष पूरे होने पर हमने प्रमुख लोगों की बैठक बुलायी। तय किया दूसरी भारत यात्रा पर नौ अगस्त को हम निकले। दूसरी यात्रा में हम देखेंगे कि पंद्रह वर्षों में क्या परिवर्तन हुआ? इसमें सभी दलों का स्वागत है। यदि पाँच बुनियादी प्रश्नों पर हम एक राय कायम कर सकें तो भारत यात्रा की लय प्राप्ति में मदद मिलेगी।’’ इस बाताचीत के कुछ घंटे बाद चन्द्रशेखर दिन भर पुरुलिया केन्द्र में रहे। उन्होंने केन्द्र के विद्यार्थियों को संबोध्ाित करते हुए कहा था, कठिनाइयों में यह विद्यालय चल रहा है। आजादी के पचास वर्षों बाद भी कई अंचलों में शिक्षा की सुविध्ाा नहीं है। जबकि भारत में कोई कमी नहीं है। अपने पुरुषार्थ से, जनशक्ति से, साझा प्रयास करके पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था आदि की सुविध्ााएँ देने के लिए ही भारत यात्रा केन्द्र बनाए गए। हम हर समस्या का समाध्ाान नहीं कर सकते पर कठिनाइयों के बावजूद हम आगे बढ़ रहे हैं। पुरुलिया के अलावा उत्तर प्रदेश के बहराइच में भी भारत यात्रा केन्द्र का एक स्कूल है। केरल के पालक्काड में वहाँ के आदिवासियों के स्वरोजगार के चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के शाश्वत विद्रोही ध् 165 166 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर लिए यात्रा केन्द्र नारियल की खेती कराता है। तमिलनाडु, पूना, गुजरात, कर्नाटक, उड़ीसा के एक-एक सुदूर पिछड़े अंचल में भी भारत यात्रा केन्द्र ने दलित आदिवासी बच्चों के लिए आश्रमशाला व स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना की है। मध्य प्रदेश के मनोहरपुर में लोहिया की स्मृति में भारत यात्रा केन्द्र ने स्मारक बनाया है। वहाँ आंगनबाड़ी, होम्योपैथी चिकित्सा केन्द्र और जंगल संरक्षण का काम किया है। भारत यात्रा के बाद पन्द्रह अत्यंत पिछड़े अंचलों में भारत यात्रा ट्रस्ट ने अपने केन्द्र तो खोले ही, साथ ही साथ सिताबदियारा में जयप्रकाश नारायण का और करौंध्ाी में राममनोहर लोहिया का स्मारक बनाया। चंपारण भीतहवा में गाँध्ाी आश्रम का इस केन्द्र ने जीर्णोद्धार किया। भारत यात्रा केन्द्र ने नरेन्द्र देव स्मृति समारोह का आयोजन किया। क्या यह बड़ी बात नहीं है कि गाँध्ाी, नरेन्द्र देव, लोहिया, जयप्रकाश की स्मृति में दिन-रात काम करते हुए भी तपती दुपहरी हो या कीचड़ में सने पैर चन्द्रशेखर थकते नहीं? गाँध्ाी के विचारों से प्रभावित होकर चन्द्रशेखर भारत यात्रा पर निकले थे। पर चन्द्रशेखर की नीतिगत यात्रा क्या अनवरत जारी नहीं रही? उस यात्रा ने ही उन्हें वह पैनी दृष्टि और सामथ्र्य दी जिसने अपने पुरुषार्थ के बल पर अत्यंत पिछड़े अंचलों की बेबसी और पीड़ा को दूर करने की उन्होंने यथासंभव कोशिश की। सौ करोड़ की आबादी वाले देश में चालीस करोड़ निरक्षर हैं। बदकिस्मती है कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी करोड़ों बच्चे स्कूल का मुँह नहीं देख पाते। कई जगह स्कूल हैं ही नहंीं। तो पहली भारत यात्रा जिन पाँच बुनियादी मुद्दों पर हुई थी उसमें एक शिक्षा का मुद्दा भी था। दूसरा पीने के पानी का मुद्दा था। आदिवासी गाँवों में प्रदूषित पानी पीने और कुपोषण के कारण कितनी माताओं की कोख खाली हो जाती है। तो पहली भारत यात्रा की समाप्ति पर चन्द्रशेखर ने एक कार्यक्रम घोषित किया था। उस पर उनके भारतयात्रा केन्द्र ने एक अंश तक अमल भी किया। जिन मुद्दों पर पहली भारतयात्रा हुई थी, उन्हीं मुद्दों पर फिर दूसरी भारत यात्रा यह जानने के लिए शुरू हुई कि विभिन्न प्रांतों में पंद्रह वर्षों में क्या परिवर्तन हुआ? मनुष्य की बुनियादी समस्याओं के समाध्ाान के लिए सरकार कुछ करे या न करे, अपनी सामथ्र्य भर यदि भारत यात्रा केन्द्र कुछ करने का संकल्प बनाए रखता है तो उसके नहीं चुकने का यह साक्ष्य है। किसी योजना का लंबे समय तक चलते रहना और सक्रिय बने रहना ही उसकी कामयाबी और सार्थकता का सबूत होता है। भारत यात्रा केन्द्र की सार्थकता यही है कि गत वर्षों में भारत को समझने की उसकी प्रक्रिया अवरुद्ध नहीं हुई है। चन्द्रशेखर के पास भारत यात्रा पर निकलने की जगह पूरे विश्व की हवाई यात्रा करने का विकल्प था। पोखरण विस्फोट के बाद चन्द्रशेखर को प्रध्ाानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। श्री वाजपेयी ने चन्द्रशेखर से कहा था, ‘‘भारत सरकार के खर्च पर आप पूरे विश्व का दौरा कीजिए और हर जगह भारत का यह पक्ष रखिए कि बम विस्फोट मजबूरी था। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी ने इन्हीं चन्द्रशेखर को भारत का पक्ष समझाने के लिए विश्व दौरे पर भेजा था। श्री चन्द्रशेखर ने वाजपेयी का प्रस्ताव ठुकरा दिया और उससे ज्यादा मुनासिब भारत यात्रा पर निकलना समझा। क्योंकि चन्द्रशेखर को लगता है कि युवाशक्ति, जनशक्ति और देश के संसाध्ानों का इस्तेमाल कर और देश के पुरुषार्थ को जगाकर ही देश की मूलभूत समस्याओं के समाध्ाान का मंत्र खोजा जा सकता है। (लेखक महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

प्रतिपुष्टि