बेमिसाल थे अध्यक्ष जी

डाॅ. सुनीलम  


चन्द्रशेखर जी यानी मेरे लिए अध्यक्ष जी। मैंने जीवन भर उन्हें अध्यक्ष जी के नाम से संबोध्ाित किया, क्योंकि मेरा सबसे पहली बार जब उनसे परिचय हुआ था तब वे जनता पार्टी के अध्यक्ष थे तथा अंत तक समाजवादी जनता पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। मैं ही नहीं देश के लाखों साथी उन्हें अध्यक्ष जी के नाम से संबोध्ाित किया करते थे। अध्यक्ष जी को लेकर मेरे दिमाग में जो विशेष स्मृतियाँ शेष हैं उनका उल्लेख करना चाहता हँू। उन्होंने देश भर में पदयात्रा की थी। पदयात्रा के दौरान देश भर में ऐसा वातावरण बना था जिससे लगने लगा था कि कोई न कोई परिवर्तन जरूर होगा। देश यात्रा के समापन के अवसर पर उनकी भावी घोषणाओं का इंतजार कर रहा था, पदयात्रा ने देश भर में जनजागरण का कार्य किया था। युवा जनता के महामंत्री के तौर पर जगह-जगह पर मैंने पदयात्रा में शिरकत की थी। विशेष तौर पर मध्य प्रदेश में ग्वालियर, चंबल के इलाके में। पदयात्रा के दौरान वे न केवल आम लोगों से दिन-रात मिला करते थे बल्कि कार्यकर्ताओं से भी लगातार बातचीत किया करते थे। इलाहाबाद में युवा जनता के सम्मेलन में अध्यक्ष जी आये थे। सुध्ाींद्र भदौरिया को अध्यक्ष बनाने का निर्णय कर लिया गया था। लेकिन हम लोग संगठन में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराना चाहते थे। लेकिन जो भी युवा साथी अध्यक्ष पद की दावेदारी के लिए आगे आता उसको पार्टी नेतृत्व समझा-बुझाकर नाम वापस करा देता। उन दिनों मैं श्री जार्ज फर्नांडीज के साथ रहता था। जार्ज साहब जब बोलने खड़े हुए तब मैंने उनके हाथ से माइक ले लिया। चुनाव कराने की माँग की। अध्यक्ष जी मंच पर मौजूद थे। मेरे इस आचरण से न तो अध्यक्ष जी नाराज हुए न ही जार्ज साहब। मुझे आज भी याद है कि अध्यक्ष जी ने कहा था- ‘घुड़सवारी का शौक है तो ऐसा घोड़ा तलाशना चाहिए जो दौड़ने में बैठ न जाए।’ आज के राजनैतिक वातावरण में किसी भी राजनैतिक दल में यह गुंजाइश आज नहीं बची है कि वहाँ युवा अपने नेतृत्व बेमिसाल थे अध्यक्ष जी ध् 177 178 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के सामने इस तरह अपने विरोध्ा को प्रकट कर सके। मुझे आज भी याद है कि जब भी विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स के मुद्दे को उठाया, तथा एक के बाद एक जनता पार्टी, लोकदल तथा अन्य दलों के लोग उनके साथ जुड़ने लगे तब वे हम सबको कहा करते थे कि तुम लोग चाहो तो जाओ। उस दौरान वे भोंडसी आश्रम का निर्माण कर रहे थे। ध्ाूप में खड़े होकर जमीन ठीक कराया करते थे। काफी समय भौंडसी आश्रम में बिताया करते थे। अध्यक्ष जी की खासियत यह थी कि वे सदा कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद के लिए तैयार रहते थे। जो भी कार्यकर्ता उनके पास किराया, इलाज, शादी-ब्याह आदि के लिए आर्थिक मदद के लिए पहुँच जाता उन्होंने कभी किसी को खाली नहीं लौटाया। सबकी मदद की। मदद करने का उनका तरीका भी जोरदार था। मदद मांगते समय जो भी साध्ान संपन्न व्यक्ति उनके आसपास होता था वे उसी से ही तत्काल आर्थिक मदद कराया करते थे। दसियों बार मैंने 3, साउथ एवेन्यू में भाई कमल मोरारका से उन्हें कार्यकर्ताओं की मदद कराते देखा। उनका संबंध्ा कार्यकर्ताओं से अत्यन्त आत्मीयतापूर्ण रहता था। मुझे याद है जब मैं अपनी शादी का निमंत्रण लेकर उनके पास पहुँचा था तब उन्होंने स्वयं मेरे साथ खादी भंडार जाकर साड़ी खरीदी थी जबकि मैं केवल युवा नेता था। पार्टी का कोई महत्वपूर्ण नेता नहीं। जब भी मैं अध्यक्ष जी के बारे में सोचता हँू तब मेरे सामने दिल्ली के भोगल के इलाके का वह दृश्य सामने आता है जब इन्दिरा जी की हत्या के बाद सिखों को जिंदा जलाने का क्रूरतम अपराध्ा काँग्रेसियों द्वारा किया जा रहा था तब वे जार्ज फर्नांडीस के साथ तथा हमारे जैसे गिने-चुने पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ सिखों को बचाने की कोशिश कर रहे थे। उस दिन जो वहशीपन का वातावरण था उसमें उन्होंने लोगों के बीच जाकर शांति का संदेश देने का काम अपनी जान जोखिम में डाल कर किया था। यही कारण था कि देश के सिखों की उनके प्रति अटूट आस्था थी। मैं जब भी नेपाल गया तब मैंने यह महसूस किया कि वहाँ के लोग सबसे ज्यादा यदि किसी भारतीय नेता का सम्मान करते हैं तो उनका नाम चन्द्रशेखर है। इसका कारण भी स्पष्ट है कि उन्होंने विश्वेश्वर कोइराला तथा नेपाली कांगे्रस के नेताओं के साथ वह सब किया जो नेपाल में लोकतंत्र के लिए जरूरी था। मैं भी एक बार अध्यक्ष जी के साथ नेपाल गया था। मुझे हाल ही में काठमाण्डू में एवरेस्ट होटल में ठहराये जाने पर मालूम हुआ कि अध्यक्ष जी के साथी ने उनके साथ मेरे संबंध्ाों के चलते मेरे लिए व्यवस्था की थी। अध्यक्ष जी का आर्थिक चिंतन एकदम स्पष्ट था। विश्व व्यापार संगठन को लेकर तथा नई आर्थिक नीतियों को लेकर वे बेबाकी से बोला करते थे तथा गैरबराबरी के सवाल को सदा उठाया करते थे। उनकी स्पष्टवादिता के चलते उनकी छवि आम देशवासियों में बहुत अच्छी थी। वे थे तो समाजवादी लेकिन उनका संबंध्ा सभी पार्टियों के नेताओं से बहुत अच्छा बना रहता था जिसके चलते कहीं भी किसी की भी सरकार रहे अध्यक्ष की सिफारिश पर कार्यकर्ताओं का काम हो जाया करता था। अध्यक्ष जी को सबसे पहले देशभर ने युवा तुर्क के तौर पर जाना। जयप्रकाश नारायण जी को इन्दिरा गाँध्ाी ने जेल में डाल दिया था। अध्यक्ष जी चाहते तो काँग्रेस में समझौता कर सकते थे, मंत्री बनकर कांगे्रस में बने रह सकते थे। लेकिन उन्होंने समझौता नहीं किया। वे 19 महीने जेल में रहे। उनकी किताब ‘मेरी जेल डायरी’ बहुत प्रसिद्ध हुई। इस किताब को उन्होंने नेपाल के विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला को समर्पित करते हुए लिखा था कि जिनकी जिंदगी इस बात का सबूत है कि कारागार की दीवारें मानव-चेतना को कभी बंदिनी नहीं बना सकतीं। अध्यक्ष जी के व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार जानने के लिए यह सबसे प्रमाणिक दस्तावेज है जिसकी भूमिका ब्रह्मानंद जी ने लिखी है। अध्यक्ष जी 1977 में चाहते तो जनता पार्टी के सरकार में मंत्री होते, लेकिन वे मंत्री नहीं बने। जब उनसे जे.पी. ने पूछा कि आप मंत्री क्यों नहीं बनना चाहते तब उन्होंने कहा था मैं उस मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं बन सकता और यह कहना गलत है कि मैं मंत्रिमंडल में जाऊँगा और वहाँ जाकर प्रध्ाानमंत्री को सुधारूंगा, क्योंकि संसदीय लोकतंत्र में मंत्री बने रहना, प्रध्ाानमंत्री की इच्छा पर निर्भर करता है। अगर आप प्रध्ाानमंत्री से इस हद तक सहमत नहीं है कि आप उसके साथ सरकार चला सकें तो ऐसे मंत्रिमंडल में शामिल होना न तो नैतिकता है न ईमानदारी। अध्यक्ष जी का यह रूप पूरे देश दुनिया ने देखा जब उन्होंने सरकार चलाने की बजाय संगठन चलाने को प्राथमिकता दी। वे अक्सर कहा करते थे कि 11 नवम्बर, 1990 को जब मैंने प्रध्ाानमंत्री की बेमिसाल थे अध्यक्ष जी ध् 179 180 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर शपथ ली तब 70-75 जगहों पर कफ्र्यू लगा हुआ था। सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। देश विनाश के कगार पर था। मैं इस स्थिति को बदल सकता हँू, इसका मुझे विश्वास था। कोई भी चुनाव नहीं चाहता था। कांगे्रस सरकार नहीं बनाना चाहती थी। इस कारण मैंने सरकार बनायी। यह चिंता किए बगैर कि यह सरकार कितने दिन चलेगी। काँग्रेस ने हरियाणा पुलिस के 2 जवान राजीव गाँध्ाी के घर के आसपास घूमने का आरोप लगाकर पहले लोकसभा के बहिष्कार की घोषणा की इस कारण मैंने इस्तीफा दे दिया। अध्यक्ष जी ने देश भर में पदयात्रा की थी। पदयात्रा करने का उनका मुख्य कारण यह था कि जनता पार्टी के बिखराव के बाद विपक्षी दलों की एकता कायम करने के उनके तमाम प्रयास सफल नहीं हुए थे। तब उन्होंने यह सोचा कि नेताओं के चक्कर काटने की बजाय आम व्यक्ति के पास पहुँचा जाय। उनकी पदयात्रा का निचोड़ था कि रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई और दवाई का माकूल इंतजाम किये बगैर देश की तरक्की संभव नहीं है। कुछ दिनों तक तो उन्होंने इन मुद्दों पर कार्य किया, भारत यात्रा केंद्र भी विकसित किये। इन केंद्रों को विकसित करने के पीछे पानी, कुपोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता की समस्याओं के हल निकालने के लिए प्रयास करना था। पदयात्रा भी उन्होंने जनता के संसाध्ानों से की थी। यह हकीकत है कि जब पदयात्रा के लिए वे निकले थे तब उनके पास केवल साढ़े तीन हजार रुपये थे। पदयात्रा रास्ते भर में लोगों के द्वारा दिये गये संसाध्ानों से ही संपन्न हुई थी। पहला भारत यात्रा केंद्र उन्होंने तमिलनाडु में सेलम से थोड़ी दूर आरकाट में बनाया था। बाद में भौंडसी सहित कई केंद्र बने। अध्यक्ष जी इन भारत केंद्रों के माध्यम से समाज और देश के लिए कुछ करना चाहते थे। 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जिला सचिव पद से वे प्रध्ाानमंत्री पद तक पहुँचे। 1962 में 35 वर्ष की आयु में राज्यसभा में निर्वाचित हुए। जब उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का पुरस्कार दिया गया तब राष्ट्रपति की हैसियत से श्री शंकर दयाल शर्मा ने उनके बारे में कहा था कि चन्द्रशेखर जी विचारों में ध्ार्मनिरपेक्ष, सर्वध्ार्म समभाव तथा समाजवादी थे। वे दूसरों के विचारों के प्रति अपने को खुला रखते थे जिसके चलते उनका वैचारिक क्षितिज व्यापक हो गया था। नये विचारों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने के गुण ने उनके अंदर विभिन्न दृष्टिकोणों को समवन्यित करने की क्षमता पैदा कर दी थी। उपराष्ट्रपति श्री के.आर. नारायणन ने उस समय कहा कि आचार्य नरेन्द्र देव के शिष्य जय प्रकाश नारायण के अनुयायी और सहयोगी से लेकर एक क्रुद्ध युवा-काँग्रेस की युवा तुर्क से लेकर भारत के प्रध्ाानमंत्री होने तक चन्द्रशेखर हृदय से समाजवादी रहे। उन्होंने प्रध्ाानमंत्री के रूप में देश से कहा अगर चारों ओर कष्टों का महासागर मंडरा रहा हो तो आप समृद्धि के द्वीपों की रक्षा नहीं कर सकते। प्रध्ाानमंत्री की हैसियत से श्री पी.वी. नरसिंहाराव ने कहा था कि चन्द्रशेखर जी ने पक्ष लिया है, पक्ष बदले हैं मगर अपनी आस्थाओं व सिद्धांतों के प्रति वे हमेशा वचनबद्ध रहे। सिद्धांतों के प्रति इसी ललक ने उन्हें अतिविशिष्ट सांसद बनाया। अध्यक्ष जी का हमेशा संघर्ष और आन्दोलन पर विश्वास बना रहा। उन्होंने समाजवादी जनता पार्टी इलाहाबाद में विशेष राष्ट्रीय अध्ािवेशन बुलाया जिसका एक ही उद्देश्य था कि सरकार की आत्मघाती आर्थिक नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया जाय। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि घर-घर जाकर कहो कि बुरे दिन आने वाले हैं इसलिए जाग जाओ। उन्होंने अपने साथियों से कहा कि एक-एक क्षेत्र चुन लो, वहाँ डेरा डालो और लोगों को संगठित करो। (लेखक मध्य प्रदेश के पूर्व विध्ाायक व राष्ट्रीय संयोजक, समाजवादी समागम हैं)

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