समय के सूरमा: चन्द्रशेखर

अरुणेश मिश्र  


नहीं फूलते कुसुम सिर्फ नहीं फूलते कुसुम सिर्फ नहीं फूलते कुसुम सिर्फ राजाओं के उपवन में। अमित बार फूलते कुंज से दूर कंुज - कानन में। समझे कौन रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल। चुन चुन कर रखती है चुन चुन कर रखती है चुन चुन कर रखती है ध्ारती, बड़े अनोखे लाल। -दिनकर राष्ट्र कवि रामध्ाारी सिंह ‘दिनकर’ की उक्त पंक्तियाँ राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जी पर पूर्णतया चरितार्थ होती हैं। अदम्य साहस के ध्ानी, कर्म निष्ठ, समाजवाद के पुरोध्ाा राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का सम्पूर्ण जीवन चलते रहो चलते रहो का जीवन्त परिचायक है। आचार्य नरेन्द्र देव जी के सच्चे अर्थों में यदि किसी को उत्तराध्ािकार प्राप्त हैं, तो वह इन्हीं को। आचार्य जी की शैक्षिक, राजनैतिक और सामाजिक विश्लेषण व मूल्यांकन की सूक्ष्म दृष्टि चन्द्रशेखर जी को शिष्यत्व व सान्निध्य की ही उपलब्ध्ाि थी। मुझे अनेकशः इस सामाजिक चिन्तना व चेता के सान्निध्य का अवसर मिला, तो जीवन की सरलता, सहजता, मानवता का जागृत स्वरूप के साथ राजनैतिक विचारों का सुस्थिर रूप देखने को मिला। अपना वही है जो देश का है। जनहितों के लिये व्यापक समर्पण की साक्षात प्रतिमूर्ति थे चन्द्रशेखर जी। एक समय था जब काँग्रेस के युवा तुर्क चन्द्रशेखर, मोहन ध्ाारिया, कृष्णकान्त और रामध्ान ने श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी के लिए कवच का काम किया और एक समय ऐसा भी आया जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन (1974) से अभिभूत होकर चन्द्रशेखर जी ने श्रीमती गाँध्ाी को जनान्दोलन के महत्व की आवश्यकता, कारण व निवारण की ओर ध्यान आकृष्ट कर सचेत भी किया लेकिन सत्ता ने जनता की भाषा को कब समझा है? आखिर युवातुर्क को युवा आन्दोलन का वाहक बनना पड़ा। चन्दशेखर जी लोकनायक जय प्रकाश जी के सम्पूर्ण क्रान्ति की वैचारिक शक्ति बनकर जनमानस के साथ आ गये। राष्ट्र कवि दिनकर जी ने लिखा ही है- जलद पटल में छिपा हुआ रवि कब तक रह सकता है? युग की अवहेलना सूरमा कब तक सह सकता है? परिणामतः यह समय क्रान्ति का था। परिवर्तन का था। जनान्दोलन की पृष्ठभूमि में स्वराज्य और सम्पूर्ण क्रान्ति का वैचारिक एवं व्यवहारिक चिन्तन का था। चन्द्रशेखर जी सत्ता के साथ नहंीं अपितु जनता के साथ आ गए। फिर जीवन ने मोड़ लिया। युवातुर्क सम्पूर्ण क्रान्ति के वाहक बन गए। उन्हीं दिनों 1974 में श्री नरेन्द्र कुमार सिंह को हमने सी.एस.एन.पी.जी. काॅलेज, हरदोई छात्रसंघ का उद्घाटन राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जी से कराने का परामर्श दिया। चन्द्रशेखर जी आए क्या प्रभावी उद्बोध्ान। समाजिक न्याय तब राजनैतिक शब्द नहीं था, लेकिन सामाजिक न्याय समाजवादी व्यवस्था से ही संभव है, युवा वर्ग इसका वाहक बने तब युग की मांग को स्वीकार करे- यह अह्वान था चन्द्रशेखर जी का। सरलता, सहजता और उनका मितभाषी व आत्मीय स्वभाव अनायास उनसे जुड़ने को विवश कर गया। फिर हम सब जुड़े तो जुड़ते ही चले गये। आपात्काल। लाठी-डण्डा, जेल, फरारी क्या नहीं हुआ। हमारे संपादन में प्रकाशित ‘तरुण क्रान्ति’ की सभी प्रतियाँ जब्त कर ली गयीं। आदिगुरु शंकराचार्य ने वैदिक ध्ार्म की स्थापना के लिए देश की सम्पूर्ण रूप से पदयात्रा की। चरैवेति चरैवेनि- यानी चलते रहो चलते के पंथ पर चलकर राहुल सांकृत्यायन महापण्डित हो गए। ‘मानव समाज’ और ‘वोल्गा से गंगा तक’ का जनमानस से परिचय करा दिया। इसी पुनीत पंथ पर चलकर चन्द्रशेखर जी ने जो भारत यात्रा की वह इतिहास में स्वर्णाभ है। उन्हें देश को और अध्ािक निकट से देखने, समझने और सोचने का अवसर मिला तथा देश ने अपने नेता की भावनाओं को सम्यक् रूप से समझा। चन्द्रशेखर जी के लिए यही समय था- आगे वह लक्ष्य ‘पुकार रहा हाँकते हवा में यान चलो’ का था। समय के सूरमा: चन्द्रशेखर ध् 187 188 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर भारत यात्रा के दौरान वे लाखों-लाख परिवर्तन को लालायित युवाओं के मार्गदर्शक बने। एक नयी चेतना तथा नयी राजनीति का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस यात्रा से वे जननेता बने और देश के गली, कूचे, गलियारे अपने नायक के जयकार से गंँुजायमान हो गया। चन्द्रशेखर जी अहिंसा और सत्य के व्रती तथा ध्ाीर-गम्भीर, कर्मठ एवं अर्थचेता थे। उनकी वक्तता और विद्वता पर आचार्य नरेन्द्र देव जी की स्पष्ट छाप थी। नेतृत्व में जयप्रकाश नारायण का लोकनायकत्व निहित था। देश के प्रध्ाानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल अविस्मरणीय है। आज देश उन्हें प्रणाम करता है। स्पष्ट वक्ता के रूप में उन्हें सदैव जाना जाएगा। उनकी निर्भीकता और विनम्रता का मणिकांचन संयोग किसी को भी अपने लक्ष्य तक पहुँचाने में सक्षम है। कवि दुष्यन्त ने लिखा है- जिए तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले जिए तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले जिए तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले मरे तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए। (लेखक एम.एल.आई. इण्टर काॅलेज, जैतीपुर, उन्नाव के प्राचार्य हैं)

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