चन्द्रशेखर: सहज और विलक्षण प्रतिभा के धनी

सुरेन्द्र प्रताप  


चन्द्रशेखर भारतीय राजनीति के सरल, सहज और विलक्षण प्रतिभा वाले नेता थे। एक अमरीकी मनोवैज्ञानिक ने सही कहा था, चन्द्रशेखर का आध्ाा व्यक्तित्व राजनेता का है, आध्ाा संत का। उन्होंने अमेरीकी राष्ट्रपति रीगन क्लिंटन के साथ चन्द्रशेखर के प्रध्ाानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी। यूँ हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य प्रसाद द्विवेदी ने भी उनके प्रध्ाानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था। इब्राहिम पट्टी से प्रध्ाानमंत्री बनने तक की यात्रा एक संघर्षपूर्ण और जुझारू जीवन की यात्रा है। चन्द्रशेखर का व्यक्तित्व अत्यन्त सरल, सहज तथा स्वभिमानी था, इब्राहिम पट्टी से लखनऊ के प्रजा समाजवादी पार्टी के दफ्तर तक की भी यात्रा बेहद संघर्षपूर्ण, रोचक एवं जीवंत है। उनमें आत्मीयता, मानवीय संवेदना और करुणा का अद्भुत मेल था। उन्हें काव्य हिन्दी आलोचक नामवर सिंह ने यारों का यार कहा है। गरीबी और संघर्ष के कारण उन्हें समाजवाद की तासीर मालूम थी। चन्द्रशेखर के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव तब आता है जब वे आचार्य नरेन्द्र देव से मुलाकात करते हैं। चन्द्रशेखर जी अर्थशास्त्र में शोध्ा कर रहे थे, आचार्य जी ने कहा शोध्ा छोड़कर समाज व देश बनाने का काम करो। आचार्य नरेन्द्र देव की अपील पर शोध्ा कार्य छोड़ चन्द्रशेखर जी समाजवादी पार्टी के काम में लग गये। आचार्य नरेन्द्र देव के नेतृतव में पार्टी संगठन का काम करने लगे। ए.पी. सेन रोड, लखनऊ में स्थित पार्टी कार्यालय से उनके राजनीतिक जीवन की नई शुरुआत होती है। आचार्य नरेन्द्र देव 1934 में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन कर चुके थे। जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैण्ड और अमेरिका के समाजवादी चिंतकों की तुलना में आचार्य जी का लोकतांत्रिक समाजवाद, भारतीय जमीन के अनुकूल था। आचार्य जी के नेतृत्व में चन्द्रशेखर जी ने समाजवाद का सिर्फ ककहरा ही नहीं सीखा, समाजवादी विचार-दर्शन को गहराई से जाना। वह एक दौर था जिसमें चन्द्रशेखर समाजवाद की आंच में तप कर निखर रहे थे। वे आचार्य नरेन्द्र देव, लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे चन्द्रशेखर: सहज और विलक्षण प्रतिभा के ध्ानी ध् 189 190 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सिद्धान्तकार नहीं बन पाये परन्तु समाजवादी विचारध्ाारा को जमीनी ध्ारातल पर व्यावहारिक रूप दिया। वे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सचिव चुने गये। आचार्य नरेन्द्र देव से वैचारिक विरोध्ा के कारण 1955 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से निकल कर सोशलिस्ट पार्टी बनायी, मगर चन्द्रशेखर प्रसोया में ही बने रहे और 1962 में पहली बार प्रसोया से राजसभा सदस्य मनोनीत हुए, 1964 में अशोक मेहता तथा उनके अनेक साथी प्रसोया छोड़ काँग्रेस में शामिल हो गए तब भी चन्द्रशेखर प्रसोया में ही बने रहे और राजनीतिक परिदृश्य को बारीकी से आंकते रहे लगभग 6 महीने बाद 1965 में वे काँग्रेस में शामिल हुए, काँग्रेस में जाने के बाद भी उनके समाजवादी विचार नहीं बदले और काँग्रेस के भीतर भी नीतियों की लड़ाई लड़ते रहे। 1967 में उन्हें काँग्रेस संसदीय दल का महासचिव बनाया गया। डाॅलोहिया के गैर काँग्रेसवाद की अपील पर नौ राज्यों में कांगे्रस बुरी तरह पराजित हुई। श्रीमती गाँध्ाी को प्रध्ाानमंत्री बने सिर्फ एक वर्ष ही हुआ था, पूरे देश में राजनीतिक बदलाव की लहर चल रही थी। ऐसी परिस्थिति विशेष में काँग्रेस में आए समाजवादियों और कम्युनिस्टों के बीच वैचारिक आध्ाार पर सम्बन्ध्ा बने। फिर वामपंथी रुझानवाला गुट बनना शुरू हुआ, जिसमें चन्द्रशेखर, आर.के. गणेश, चन्द्रजीत यादव, कृष्णकांत, मोहनध्ाारियों और रामध्ान एकजुट हुए। संसद में काँग्रेस का मोर्चा सम्भालने नीतियों पर प्रखर विचार रखने और तार्किकता तथा समाजवादी विचारों के कारण चन्द्रशेखर, मोहनध्ाारियों और कृष्णकांत को विशेष लोकप्रियता हासिल हुई। अपने मूल विचारों के कारण उन्हंे युवा तर्क कहा जाने लगा। देश में काँग्रेस के खिलाफ चल रही लहर के बावजूद चन्द्रशेखर ने देश के कई हिस्सों का दौरा करके जनता की समस्याओं का अध्ययन किया। उन्होंने एक दस सूत्रीय कार्यक्रम बनाया, जिसमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण, भूमि सुध्ाार, प्रीवीपर्स आदि प्रमुख थे। 1962 में श्रीमती गाँध्ाी ने दस सूत्रीय कार्यक्रम पर अमल करना शुरू किया और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। वैचारिक मतभेद के कारण अंततः काँग्रेस विभाजित हुई, कम्युनिस्टों के सहयोग से अल्पमत काँग्रेस सरकार चलती रही। बांग्लादेश के युद्ध और गरीबी हटाओ के नारे से श्रीमती गाँध्ाी को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। इन्दिरा गाँध्ाी की तानाशाही और मनमानी प्रवृत्ति के कारण काँग्रेस के भीतर और बाहर काँग्रेस के खिलाफ सभी पार्टियों और आम जन लाम बंद होने लगे। दो वर्षों के भीतर ही बिहार में काँग्रेस के विरुद्ध आन्दोलन शुरू हो गया। अपने राजनीतिक संन्यास को तोड़कर जय प्रकाश नारायण उस आन्दोलन में कूद पड़े। जे.पी. के साथ काँग्रेस का समझौता वार्ता इन्दिरा गाँध्ाी के जिद्द के कारण नहीं हो पाया। 25 जून 1975 की रात आपात्काल घोषित कर दिया और जे.पी. को नई दिल्ली में गाँध्ाी शांति प्रतिष्ठान से गिरफ्तार कर लिया गया। संसद मार्ग जाने पर पहुँच कर चन्द्रशेखर जी ने अपनी गिरफ्तारी दी। आपात्काल की समाप्ति के बाद आम सहमति से चन्द्रशेखर जी को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। यही ऐतिहासिक गलती हुई। उन्हंे अध्यक्ष के बजाय प्रधानमंत्री बनाना चाहिये था। 1977-1987 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे। 1983 में देशव्यापी पदयात्रा कर चर्चा में इतनी बड़ी पद यात्रा भारत में किसी ने नहीं की थी। इस पद यात्रा से इन्होंने भारत की सहमति, ग्राम पत्र को जाना। इसी यात्रा को नए ढंग से मूर्तिवान करना चाहते थे। आचार्य नरेन्द्र देव की समाजवादी राह को नया स्वरूप देना चाहते थे। एक संसदीय कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनायी। उनके भाषण महत्वपूर्ण हैं जिनका संचयन होना चाहिये। इन्होंने अपने संघर्ष, चिंतन और कार्यों से राजनीति में एक नया प्रतिमान बनाया। यदि चन्द्रशेखर के राजनीतिक सफरनामे का मूल्यांकन किया जाए तो वे आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण की परम्परा के चिंतक और राजनेता दिखाई देते हैं। चन्द्रशेखर ने अपने गुरु आ. नरेन्द्र देव की तरह समाजवाद के दर्शन का इजाद नहीं किया परन्तु उसकी परम्परा को बढ़ाने और निखारने का कारगर प्रयास किया, उनके सैकड़ों भाषणों में समाजवाद के अनमोल और नये सूत्र बिखरे हुए हैं। उन्हें यदि उनकी भारत यात्रा से जोड़कर देखा जाए तो उनके विचारों और व्यक्तित्व को काफी हद तक समझा जा सकता है, उनका समाजवाद सिर्फ थ्योरिटिकल ही नहीं जमीनी था। जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति की अवध्ाारणा बहुत कुछ चन्द्रशेखर के सहयोग से बनी थी। इस पूरे आन्दोलन में जे.पी. के साथ सिर्फ भावनात्मक स्तर पर ही नहीं व्यावहारिक स्तर पर भी पूरी ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ जुड़े रहे। चन्द्रशेखर, चन्द्रशेखर के संघर्ष, चिंतन, मनन पर पुनर्विचार होना चाहिये। चन्द्रशेखर: सहज और विलक्षण प्रतिभा के ध्ानी ध् 191 192 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर आ. नरेन्द्र देव, जय प्रकाश नारायण, लोहिया के साथ-साथ चन्द्रशेखर के विचारों को जोड़कर देखने से जो तसवीर बनती है, समाजवाद की मुक्कमल तस्वीर होगी। हिन्दुस्तान की युवा पीढ़ी में वे सर्वाध्ािक लोकप्रिय नेता के रूप में वे जाने जाते रहे हैं, भारत में समता, समानता और समरस समाज के निर्माण के लिए चन्द्रशेखर के विचार बराबर प्रासंगिक रहेंगे। (लेखक काशी विद्यापीठ शिक्षक संघ के अध्यक्ष रहे हैं)

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