उनका गरिमामय स्नेह हमारे जीवन की अनमोल थाती

अंजना प्रकाश  


श्री चन्द्रशेखर जी से हमारी पहली सीधी मुलाकात बहुत रोचक रही। मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ जेल से रिहाई के बाद नयी दिल्ली में श्री मोरार जी भाई के आवास के बाहर हुई थी। वे हाल में जेल से छूट कर आए। हम लोग पहले ही छूट चुके थे। वे मोरार जी भाई से मिलकर उनके घर से पैदल ही आ रहे थे और हम व श्री सत्य प्रकाश मालवीय जी और श्री शतरुद्र प्रकाश भी पैदल ही माननीय मोरार जी भाई से मिलने उनके घर जा रहे थे। सड़क की पटरी पर ही उन्होंने हम लोगों को देखा और आत्मीयता से हंसते हुए करीब आ गए। उन्होंने मालवीय जी का हाल चाल लिया। बहुत ही स्नेह के साथ मुस्कुराते हुए हमसे कहा यह तो बड़ी नेता हो गयी हैं। उस समय जे.पी. मूवमेण्ट के दौरान हम बी.एच.यू. छात्र संघ के उपाध्यक्ष हो चुके थे और इमरजेंसी में जेल से छूट कर बाहर आए। श्री चन्द्रशेखर जी उस समय पूरे देश खासकर युवाओं में यंग टर्क के रूप में काफी लोकप्रिय हो चुके थे। हालाँकि इस मुलाकात में पहले भी हमने उन्हें अपने मामा श्री रामायण राय जी- जो काँग्रेस पार्टी से चुनाव जीत कर विध्ाायक होते रहते थे- के लखनऊ स्थित 66, दारुलशफा विधायक निवास में देखा था। हमारे मामा बी.एच.यू., छात्रसंघ अध्यक्ष भी हुए। उनकी चन्द्रशेखर जी से मित्रता और पारिवारिक सम्बन्ध छात्र जीवन से ही रहे। वे दोनों ही आचार्य नरेन्द्र देव जी को अपना आदर्श मानकर सोशलिस्ट पार्टी में रहे। फिर दोनों सोशलिस्ट पार्टी छोड़कर काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गये। सन् 1974 में उ.प्र. के राज्यसभा के चुनाव में हमारे मामा श्री रामायण राय जी श्री चन्द्रशेखर जी के चुनाव एजेण्ट रहे। उस चुनाव में श्री राजनारायण जी राज्यसभा के लिये बी.के.डी. के तथा श्री चन्द्रशेखर जी काँग्रेस पार्टी के उनका गरिमामय स्नेह हमारे जीवन की अनमोल थाती ध् 193 194 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर उम्मीदवार थे। चूँकि उस चुनाव में देश के उस समय के सबसे बड़े पूँजीपति श्री के.के. बिड़ला भी राज्यसभा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। चूँकि उन्हें देश की तत्कालीन प्रध्ाानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी की शह थी। यह आशंका बन गयी कि चुनाव में श्री बिड़ला विध्ाायकों की जबर्दस्त खरीद फरोक्त करेंगे। लिहाजा इस वजह से चन्द्रशेखर जी और श्री राजनारायण में से कोई एक ही जीत पाएगा। उस समय यह भी जग जाहिर हो गया था कि चन्द्रशेखर जी की साफगोई और लोकनायक जय प्रकाश जी के सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के प्रति उनका नरम रुख श्रीमती इन्दिरा गांधी को नागवार लग रहा था। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद श्री चन्द्रशेखर तथा श्री राजनारायण दोनों राज्यसभा का चुनाव जीत गए और बिड़ला चुनाव हार गए। आज के मौजूदा राजनीतिक दौर के चुनाव हर पूँजीपति की दावेदारी बमुकाबले किसी भी कार्यकर्ता के बहुत अधिक सशक्त मानी जाती है। चाहे वह अनिल अम्बानी, विजय माल्या या फिर शोभना भारतिया जैसे मालदार हों। राजनीतिक घटनाक्रम ऐसा चला कि सन् 1977 के बाद से लकर उनके देहावसान तक उनसे निजी और राजनीतिक सम्बन्ध्ा बना रहा। करुणा, आत्मीयता और मानवीय सम्वेदना उनके व्यक्तित्व के स्वाभाविक गुण थे, जीवन की तमाम ऊँचाइयों पर पहुँचने के बावजूद वे गरीबों और कार्यकर्ताओं के दुख-दर्द को हमेशा महसूस करते थे। उनकी जरूरतों का पूरा ख्याल रखते थे। परिवार के सरपरस्त जिस तरह की सुरक्षा और स्नेह देते हैं हम सबको उनसे बराबर मिलता रहा। मौजूदा दौर में राजनीतिक कार्यकत्र्ता इस सहजता का एहसास भी नहीं कर सकता कि भारतीय संसदीय व्यवस्था के सर्वोच्च पद पर पहुँचने वाले श्री चन्द्रशेखर जी से किसी भी जाति, ध्ार्म, सम्प्रदाय, उम्र, और अनुभव का व्यक्ति अपनी बात और असहमति सहजता के साथ व्यक्त कर सकता था। राजनीतिक घटनाक्रम तथा नीति कार्यक्रम की बाबत श्री रामध्ान, श्री मोहन ध्ाारिया, श्री कृष्ण कांत, अर्जुन सिंह भदौरिया, श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव आदि से सलाह मशिवरा करने के साथ-साथ वे हमेशा उन्हीं विषयों पर अपने नौजवान साथियों की राय को भी बराबर का महत्व देते थे। वे महिलाओं का बहुत आदर करते थे। श्रीमती प्रमिला दण्डवते, श्रीमती सरला भदौरिया, श्रीमती मृणाल गोरे, श्रीमती नंदिनी सतपथी, श्रीमती सरोजिनी महिषी सहित अनेक महिला नेता उनके राय-मशविरों में शामिल रहती थीं। चन्द्रशेखर जी की रहनुमाई में उनके सभी कार्यकर्ता महिलाओं का आदर सम्मान करते थे। कोई किसी महिला के साथ ओछी हरकत या निरादर करने का साहस नहीं कर सकता था। उन्होंने घटिया राजनीतिक संस्कृत को प्रश्रय नहीं दिया। इसी वजह से कार्यकर्ताओं में सहज ही एक राजनीतिक परिवार का भाव उत्पन्न हो जाता था। उन्होंने कन्याकुमारी से शुरू करके काश्मीर तक ऐतिहासिक भारत यात्रा पैदल चल कर पूरी की थी। उसमंे हमें भी हिस्सा लेने का सौभाग्य मिला था। रास्ते में विभिन्न पड़ावों पर रुकते हुए अनेक सम्मेलन आयोजित किये जाते थे। जिसमें स्थानीय लोगों को अपनी समस्याओं को बताने का अवसर मिलता था और हमें तरह-तरह के लोगों और उनके रीति-रिवाजों, खाने-पीने और रहने के तरीकों, उनकी बोलचाल, स्थानीय शब्दों और उनके उच्चारण को देखने सुनने व समझने का दुर्लभ अनुभव हुआ। बहुत कुछ सीखने को मिला। दिन भर पैदल चलना और रात के पड़ाव पर अपने-अपने अनुभवों को एक दूसरे को बताना। उनके पैर सूज जाते थे। गरम पानी की पट्टियाँ ही उनका इलाज था। गजब का जोश और उत्साह था। बहुत कुछ कर गुजरने की जबर्दस्त चाहत थी। मुम्बई में उनकी यात्रा के दौरान तो अद्भुत नजारा था। उस मीटिंग में हम लोगों ने भी अपने विचार व्यक्त किये थे। बदलाव के स्वरों की गूँज पूरी मुम्बई सुन रही थी। सिनेमा जगत के मशहूर अभिनेता श्री दिलीप कुमार भी अपने को रोक नहीं पाए। उन्होंने श्री चन्द्रशेखर जी के मुंबई प्रवेश के समय श्रीमती सायरा बानो सहित अनेक कलाकारों के साथ उनकी अगवानी की और पदयात्रा में भाग लिया। चन्द्रशेखर जी के कदमों से कदम मिलाते हुए हजारों हजार कदम उस भारतयात्रा में कदम ताल कर रहे थे। उस नजारे का बयान बहुत मुश्किल है खाली एहसास ही एहसास रह गया है। पैरों से चलकर देश को समझने का साहस अब कौन करेगा? सन् 1989 में सारनाथ में महान समाजवादी नेता आचार्य नरेन्द्र देव जी की जन्म शताब्दी पर भव्य राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया था। वह आचार्य नरेन्द्र देव जी को अपना आदर्श मानते थे। आचार्य जी का जन्म 31 अक्टूबर, 1889 को जनपद सीतापुर उ.प्र. में हुआ था। वह काशी विद्यापीठ, जिसकी उनका गरिमामय स्नेह हमारे जीवन की अनमोल थाती ध् 195 196 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर स्थापना महात्मा गांधी ने की थी, में सन् 1922 में प्रथम प्रधान आचार्य थे। बाद में वे काशी विश्वविद्यालय के कुलपति भी बनाए गए थे। उन्हें सन् 1934 में बनी काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था। भारतीय राजनीति में आचार्य जी जितना विद्वान और शिष्ट व्यक्ति दूसरा कोई नहीं हुआ। माक्र्सवाद, भारतीय सोशलिज्म तथा बौद्ध दर्शन के वे प्रकांड विद्वान थे। श्री चन्द्रशेखर जी ने अपने आदर्श आचार्य जी की स्मृति में सारनाथ में आयोजित ऐतिहासिक सम्मेलन में अपने समय के सभी राष्ट्रीय नेताओं को आमंत्रित करने के साथ-साथ उन्हें विशेष तौर पर बुलाया था जो देश की आजादी की लड़ाई में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे या आचार्य जी के साथ रहे थे। श्री कमलापति त्रिपाठी, श्री नारायण दत्त तिवारी, श्री प्रभु नारायण सिंह, श्री भीष्म नारायण सिंह आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे। उन्हें सारनाथ बहुत पसंद था। सारनाथ आया-जाया करते थे। वे अक्सर सारनाथ में वन विभाग के निरीक्षण भवन में रुका करते थे। बनारस में सम्मेलन होने की वजह से हम सभी उस कार्यक्रम में सहयोगी थे। कार्यक्रम के शुरुआत में उन्होंने सारनाथ मन्दिर चैराहे पर आचार्य नरेन्द्र देव जी की मूर्ति का अनावरण उ.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी जी से कराया था। तीन दिवसीय सम्मेलन में देश के कोने-कोने से प्रतिनिध्ाियों व नेताओं के आने का क्रम बना हुआ था। सम्मेलन के दूसरे दिन उन्हें तेज बुखार आ गया। दरअसल इतने बड़े आयोजन में वे लगातार कई दिनों से भागदौड़ कर रहे थे। हर व्यवस्था का स्वयं ही निरीक्षण करते और देर रात तक सम्मेलन में आये हुए साथियों से व्यक्तिगत तौर पर मिलकर उनका हाल-चाल लेते। तेज बुखार के चलते सभी साथी चिंतित हो गए। डाॅक्टरों ने भी सलाह दी कि बनारस शहर के किसी अस्पताल या गेस्ट हाउस में आराम कर लें वरना तबीयत बिगड़ सकती है। लेकिन आयोजन को लेकर वे काफी चिंतित थे। तेज बुखार होने के बावजूद उन्होंने मंच के पीछे ही टेंट में फोल्डिंग खाट डलवाई और वहीं से सबको निर्देश देते रहे। अचानक बुखार बढ़ने लगा। तेज बुखार से उनका पूरा शरीर कांप रहा था। हम सभी परेशान हो गए। आयोजन स्थल शहर से दूर होने की वजह से तत्काल कोई व्यवस्था करना मुश्किल था। तब हम लोग भागम भाग में गाड़ी से वन विभाग के प्रभारी नागर जी के घर पहुँचे और उनकी श्रीमती जी को सारी बात बतायी। उनसे कम्बल लेकर वापिस आए। तब तक डाॅक्टर भी दवा वगैरह लेकर आ गए। हम सभी थोड़ा निश्चिंत हुए। किन्तु चन्द्रशेखर जी पण्डाल छोड़ कर नहीं गए। हम सब उनके दृढ़ निश्चय और कामरेडशिप की भावना के कायल हो गए। आज तो कार्यकर्ता पुलिस की लाठियों से पिटता है और नेता पंच सितारा होटलों में आराम फरमा रहे होते हैं। कार्यकर्ताओं को कहते हैं जेल भरो और खुद विदेश यात्राएँ करते हैं। राजनीतिक संस्कृतिक का पराभव अपने चरम पर है। उन्होंने हम लोगों को उस समय अस्वस्थ चल रहे आदरणीय कमलापति त्रिपाठी जी को सम्मेलन में लाने की जिम्मेदारी दी। हमारे बाबा आदरणीय विश्वनाथशर्मा जी आजादी की लड़ाई में आदरणीय कमलापति जी के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे और जेल में भी सह बंदी रहे। हमारे बाबा आजीवन समाजवादी व गाँध्ाीवादी रहे और काशी विद्यापीठ के स्थापना सदस्य होने के साथ-साथ आजीवन सचिव रहे। काशी विद्यापीठ से सम्बद्ध होने की वजह से दोनों आत्मीय बने रहे। जब हम चन्द्रशेखर जी के अनन्य मित्र श्री ओम प्रकाश जी सहित आदरणीय कमलापति जी को मोटरकार में बैठा कर सारनाथ ले जा रहे थे तो रास्ते में मा. कमलापति जी ने बाबा के साथ कुछ संस्मरण सुनाते हुए ओम प्रकाश जी से कहा जब चंदौली वालों ने हमें हराया तो जौनपुर वालों ने हमें जिताया और विध्ाानसभा में भेज कर हमारा सम्मान रखा। भारत बनाओ अभियान के दौरान उन्होंने सारनाथ से बिहार तक एक पदयात्रा का आयोजन किया था। उसमें हमने, आनंद भैया, श्री शतरुद्र प्रकाश, कुँवर सुरेश, श्री अरुण दुबे आदि ने भाग लिया। वह यात्रा सारनाथ से प्रारम्भ होकर गाँव-गाँव होते हुए सिताबदियारा के रास्ते पटना के गाँध्ाी मैदान में जन सभा के रूप में सम्पन्न हुई। चन्द्रशेखर जी बहुआयामी व्यक्तित्व के इंसान थे। वे बहुत प्रभावशाली वक्ता थे। संसद में वे जब भी बोलते थे मौजूद सभी पक्ष शांत होकर उनकी बात को गम्भीरता से सुनते थे। संसद के अंदर युवा तुर्क के रूप में उनकी अलग पहचान बनी। सन् 1991 में जब वे प्रध्ाानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे थे तब उन्होंने हम लोगों को देखकर राष्ट्रपति भवन में मोटर रोक कर कहा कि आ रहे हो उनका गरिमामय स्नेह हमारे जीवन की अनमोल थाती ध् 197 198 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर न? जबकि शपथ समारोह का निमंत्रण सबके पास न होने की वजह से हम सभी संकोच में थे। वे हम सभी को अपने साथ ले गए। सार्वजनिक और निजी जीवन में उच्च आदर्श मूल्यों को जीवन सात करते हुए परिवार के सरपरस्त की तरह जो गरिमामय स्नेह उन्होंने दिया वह हमारे जीवन की अनमोल थाती है। (लेखिका बीएचयू छात्रसंघ की उपाध्यक्ष रही हैं)

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