भारतवर्ष में अनेक राजनेता आये एवं भारत के राजनीति पटल पर अपना प्रभाव छोड़ा, परन्तु चन्द्रशेखर जी के एक अलग व्यक्तित्व ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम एवं नई दिशा दी। चन्द्रशेखर जी का भारतीय राजनीति में अगर कोई स्थान आता है तो वह सरदार पटेल एवं नेहरू के समकक्ष का है। उन्होंने जिस निर्भीकता से अपनी बातें लोगों के सामने रखी हैं। वह शायद किसी सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं है। आजादी के एक वर्ष पहले की बात है यानी 1946 की। चन्द्रशेखर जी के जीवन की वह पहली घटना थी। स्वाधीनता सेनानी, परशुराम सिंह आजीवन कारावास काट कर आये थे और उनका सम्मान हो रहा था, स्वाधीनता सेनानियों की सभा थी। बागी बलिया के योद्धाओं का जमघट लगा हुआ था, मंच पर धुरन्धर नेता मौजूद थे, परन्तु जिस 18 वर्ष के तरुण नेता ने अपने ओजस्वी भाषण से लोगों का जो ध्यान आकर्षित किया वह शायद सबों के लिए एक अविस्मरणीय था और भारतवर्ष की राजनीति में एक नये सूर्य का उदय हो रहा था। तब से लेकर चन्द्रशेखर जी के अन्तिम समय तक उन्होंने अपनी बेलाग बात रखने की आदत नहीं छोड़ी। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि सुनने वाले कितने बड़े लोग हैं या किस वर्ग के हैं, वे अपनी बात बड़ी सहजता से रखते थे। चन्द्रशेखर जी भारतीय राजनीति में बिल्कुल ऋषि या एक संन्यासी के भाव से आजीवन कार्यरत रहे। उनका समस्त जीवन समाज सेवा और पीडि़त एवं शोषित व्यक्तियों को न्याय दिलाने में खप गया। भारतीय राजनीति के पिछले 60 वर्षों के इतिहास में चन्द्रशेखर जी का एक ऐसा नाम है, जिन्होंने भारत की समग्र राजनीति पर अपनी छाप छोड़ी। आचार्य नरेन्द्र देव में इन्हें 1951 में बलिया शोसलिस्ट पार्टी का मंत्री और 1955 में उ.प्र. सोसलिस्ट पार्टी का महामंत्री बनाया। श्री चन्द्रशेखर जी आजीवन अन्तःमन से एक सच्चे समाजवादी रहे, जो उनके चरित्र में, उनके कर्म में सदैव परिलक्षित होता रहा। अपने गाँव इब्राहिम पट्टी से जो राजनीतिक यात्रा शुरू चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक ध् 199 200 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर की वह जब तक जीवित रहे सदैव यात्रारत ही रहे। लोगों की पीड़ा हमेशा उनकी अपनी पीड़ा रही, चाहे वह व्यक्तिगत पीड़ा हो अथवा सामाजिक या पारिवारिक। मुझे एक घटना याद है, चन्द्रशेखर जी बलिया आये हुए थे और 3-4 दिनों के रुकने के बाद दिल्ली जा रहे थे। बलिया रेलवे स्टेशन पर मैं उनके साथ था, उसी समय किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि उनके एक बचपन के मित्र बहुत बीमार चल रहे हैं और अब चलने-फिरने योग्य भी नहीं हैं, उनके चेहरे पर अचानक बहुत ही तकलीफ व दर्द का भाव आया और वे संजीदा हो गये। फिर अपने पाकेट में हाथ डाला और जितने रुपये थे, जो अगर मेरी स्मरण शक्ति सही है तो पच्चीस हजार के आस-पास थे, मुझे एकान्त में ले गये और कहा, ‘‘उमाशंकर यह पैसे आप उन्हें दे दीजिए और जैसे ही कुछ ठीक हो जायं उन्हें आप दिल्ली मेरे आवास पर भेज दें, मैं उनका इलाज भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में करवाऊँगा’’। मैं अचम्भित था मुझे एक निर्भीक, प्रखर राजनीतिक योद्धा का कोमल दिल दिखाई पड़ रहा था। करीब 1952 की बात होगी जब डाॅ. राम मनोहर लोहिया से उनकी पहली मुलाकात हुई। डाॅ. राम मनोहर लोहिया का व्यक्तित्व बहुत बड़ा था और वे बड़े समाजवादी नेता थे। चन्द्रशेखर जी को आचार्य नरेन्द्र देव ने राजनीति में आने को प्रेरित किया था, चन्द्रशेखर जी तो एम.ए. पास करने के बाद पी.एच.डीकरना चाहते थे, परन्तु आचार्य नरेन्द्र देव ने उन्हें कहा था, ‘‘चन्द्रशेखर शोध तो बहुत लोग कर लेंगे, परन्तु आप जैसे लोगों को देश की सेवा करनी चाहिए आप राजनीति में आइये’’। बलिया में एक ददरी मेला होता है जो कि प्रत्येक वर्ष शीतकालीन ऋतु में मनाया जाता है। चन्द्रशेखर जी ने ददरी मेले के अवसर पर बलिया में एक सम्मेलन आयोजित किया और उसमें आचार्य नरेन्द्र देव को आना था। आचार्य नरेन्द्र देव दमा रोग से बीमार थे। जब चन्द्रशेखर जी उनके पास पहुँचे तो आचार्य नरेन्द्र देव ने कहा मेरी तबियत ठीक नहीं है, गत रात्रि में दमा का मेरे ऊपर दौरा पड़ा है, अतः आप डाॅ. लोहिया को उस सम्मेलन में ले जायं, डाॅ. राम मनोहर लोहिया उन्हीं के पास बैठे हुए थे। डाॅलोहिया ने कहा मुझे कलकत्ता जाना है मैं बलिया कैसे आ सकता हूं तो चन्द्रशेखर जी उन्हें सुझाव दिया कि आप बलिया आ जायं एवं कार्यक्रम के बाद बक्सर से कलकत्ता के लिए ट्रेन मिल जायेगी। डाॅ. लोहिया ने कहा ठीक है, परन्तु बलिया से बक्सर के लिए किसी जीप की व्यवस्था कर देना, चन्द्रशेखर जी ने कहा हो जायेगा। डाॅ. लोहिया बलिया आये और उन्होंने पूछा कि जीप कहाँ है? चन्द्रशेखर जी ने कहा आपको तो शाम को जाना है, जीप की व्यवस्था होगी। संभवतः डाॅ. लोहिया को किसी ने यह कह दिया था कि जीप की व्यवस्था नहीं हो पायी है, इससे वह चिन्तित थे। डाॅ. लोहिया अचानक बिगड़ गये एवं कहने लगे ‘‘झूठ बोलते हो, किसी जीप का इन्तजाम नहीं है, झूठ बोल कर लोक कार्यक्रम लगवा लेते हैं’’। दो-तीन बार इस बात को दोहराने पर चन्द्रशेखर जी को यह आरोप असहज लगा और उन्होंने डाॅ. लोहिया को यह कहा कि केवल आप ही ईमानदारी के पुतले नहीं है और न ही आप ही केवल सत्य बोलने वाले अंतिम व्यक्ति हैं, और लोग भी ऐसे हैं। मैंने आपको नहीं बुलाया है, आपको आचार्य ने बुलाया है, कृपा कर आप अपनी तशरीफ ले जायं और एक व्यक्ति जो पास ही खड़ा था, चन्द्रशेखर जी ने उससे कहा कि ‘‘डाॅलोहिया को जो जीप खड़ी है, उनके रुकने के स्थान पर पहुँचा दें। डाॅ. लोहिया को लग गया कि चन्द्रशेखर जी झूठ नहीं बोल रहे हैं। उन्होंने सारी सभायें की और नियत समय पर कलकत्ता के लिए रवाना हुए। उस समय शायद ही कोई ऐसा समाजवादी व्यक्ति रहा होगा जो डाॅ. लोहिया के सामने इस तरह की बात कहने में सक्षम रहा हो, डाॅ. लोहिया का व्यक्तित्व बहुत बड़ा था और वे एक बड़े राजनेता थे। चन्द्रशेखर जी का डाॅ. लोहिया से ऐसा कोई सैद्धान्तिक मतभेद तो नहीं था, परन्तु जिस तरह से डाॅ. लोहिया राजनीति में लोगों पर व्यक्तिगत आरोप लगाते थे उस पर चन्द्रशेखर जी को अवश्य आपत्ति थी। ऐसी स्पष्टवादिता थी चन्द्रशेखर जी की। उनके सामने यह महत्वपूर्ण नहीं था कि उनके समक्ष कितना बड़ा व्यक्ति है, उनके सामने यह ज्यादा महत्वपूर्ण होता था कि सत्य किस ओर है। चन्द्रशेखर जी जब काँग्रेस में गये तो एक बार उनसे श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सवाल किया कि क्या वे काँग्रेस को समाजवादी मानते हैं? इस पर चन्द्रशेखर जी ने कहा कि ‘‘मैं नहीं मानता कि काँग्रेस समाजवादी संस्था है, पर लोग ऐसा कहते हैं’’। श्रीमती इन्दिरा गाँधी इस उत्तर को सुन कर विस्मृत थीं उन्हें शायद इस उत्तर की उम्मीद नहीं थी। फिर श्रीमती गाँधी ने उनसे कहा- ‘‘जब काँग्रेस समाजवादी संस्था नहीं है, तो आप इस संस्था में आने के बाद क्या करना चाहते हैं? इस पर चन्द्रशेखर जी ने एकदम स्पष्ट तौर पर कहा कि काँग्रेस को मैं सोशलिस्ट बनाने की कोशिश करूंगा और अगर नहीं बनता है तो मैं इसे तोड़ने का प्रयास करूंगा। क्योंकि जब तक काँग्रेस चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक ध् 201 202 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर टूटेगी नहीं तब तक देश के राजनीति में कोई बदलाव नहीं आयेगा। श्रीमती गाँधी विस्मृत सी उन्हें देखती रह गयीं। चन्द्रशेखर जी ने कभी भी अपने मन्तव्य, अपने भावों को श्रीमती गाँधी से नहीं छुपाया, यह उनके बेवाकीपन का एक नमूना है। आज जहाँ लोग अपेन हाईकमान के आगे साष्टांग दण्डवत् किये रहते हैं, वहीं चन्द्रशेखर जैसा व्यक्तित्व बदलाव की बात करता था, व्यवस्था परिवर्तन की बात करता था, और यही व्यक्तित्व उनको भीड़ से अलग कर एक ऐसा अकेला राजनीतिज्ञ बनाता है, जो आजकल बहुत कम या नहीं दिखाई पड़ता है। श्रीमती गाँधी से 1971-72 में असहमति जताने का जोखिम चन्द्रशेखर जी ही ले सकते थे। इन्दिरा जी के मर्जी के उल्टा कार्यसमिति का चुनाव लड़ा और जीते भी। 1974 में राजनीतिक भू-चाल के लक्षण दिखाई पड़ने लगे, अभूतपूर्व रेल हड़ताल, गुजरात का नव-निर्माण आन्दोलन फैलते-फैलते बिहार के छात्र आन्दोलन में बदल गया। छात्रों ने बिहार विधानसभा घेरने के लिए अभूतपूर्व रैली की। इन छात्रों के पास नेतृत्व की कमी थी और जय प्रकाश नारायण ने उस कमी को पूरा किया। यह जे.पी. आन्दोलन के रूप में आज भी इतिहास के सुनहरे पन्नों में है और इस आन्दोलन ने देश की दशा-दिशा बदल कर रख दी, इस आन्दोलन ने काँग्रेस की जड़ें हिला दीं और इस आन्दोलन ने अनेक ऐसे नेता दिये जिन्होंने आने वाले समय में देश और प्रदेश को अपना नेतृत्व दिया। जय प्रकाश जी के आह्वान पर कई दलों के लोग सक्रिय हो गये, श्रीमती इन्दिरा गाँधी और जय प्रकाश की दूरियाँ बढ़ती गयीं। चन्द्रशेखर जी उस समय काँग्रेस के नेता थे, कार्यसमिति के सदस्य थे, परन्तु उनका दृढ़ मत था कि श्रीमती गाँधी और जय प्रकाश नारायण में वार्ता होनी चाहिए। चन्द्रशेखर जी सिद्धान्तों के साथ थे, वे जय प्रकाश नारायण के विचारों के साथ थे। काँग्रेस के नरोरा सम्मेलन को चन्द्रशेखर जी ने अकेले सम्भाला था, वहाँ पर उन्होंने जय प्रकाश जी के उठाये हुए मुद्दों पर प्रखरता से अपनी बात रखी थी। नरोरा सम्मेलन के तीन-चार दिन पहले जय प्रकाश जी जब दिल्ली आये थे, तो चन्द्रशेखर जी ने उनका स्वागत किया था, करीब 50 काँग्रेस नेताओं ने उसमें शिरकत की थी। बहुत सारे काँग्रेसी मंत्रियों ने चन्द्रशेखर जी को इस अदम्य साहस के लिए बधाई दी और अनौपचारिक रूप से कहा कि वे उनके साथ हैं, परन्तु श्रीमती गाँधी के खिलाफ कुछ बोल नहीं सकते, यह केवल चन्द्रशेखर जी ही ताकत थी जो सत्ता के विरोध में सही बातों को दुनिया के सामने रखा। देश में आपात्काल की घोषणा हुई, आज के वे समस्त विपक्ष के नेता जो आपात्काल के विरोधी थे, के पास सिर्फ एक विकल्प था और वह विकल्प जेल जाने का था, वे जेल गये भी। उसमें से आज के बहुत बड़े-बड़े नेता श्रीमती गाँधी से गोपनीय समझौता कर पैरोल पर जेल से बाहर भी आ गये, परन्तु चन्द्रशेखर जी के पास दो विकल्प थे, अपने पसन्द के किसी भी विभाग का मंत्री बनना अथवा जेल जाना। उन्होंने जेल जाना पसन्द किया। यह थी चन्द्रशेखर जी की ताकत। शायद की कोई ऐसा राजनीतिक व्यक्ति होगा जो अपनी बात इतनी निर्भीकता से कह सके। 1977 में जब सरकार बनने की बात आई तो जय प्रकाश जी ने चन्द्रशेखर जी से पूछा कि किसको प्रधानमंत्री बनाया जाय? चन्द्रशेखर जी ने कहा उम्मीदवार कौन-कौन हैं? इस पर जय प्रकाश जी ने कहा कि तीन उम्मीदवार हैं-मोरार जी भाई, चरन सिंह और जगजीवन बाबू। चन्द्रशेखर जी ने कहा आप इसमें किसी को भी प्रधानमंत्री बना दें, मोरार जी भाई को छोड़ कर। जय प्रकाश जी के यह पूछने पर कि वह ऐसा क्यों सोचते हैं? चन्द्रशेखर जी ने कहा कि मोरारजी भाई सेल्फ ओपिनियटेड आदमी हैं, अपनी बात चलाना चाहेंगे, जबकि जरूरत इस बात की है कि सबको साथ लेकर चला जाय। अगर उनकी बात मान ली गयी होती तो भारतीय राजनीति की दिशा अलग होती, शायद जनता पार्टी ढाई वर्षों में न टूटती। मंत्रिमण्डल जब बन रहा था तो उसमें चन्द्रशेखर जी का भी नाम था, परन्तु चन्द्रशेखर जी ने मना कर दिया। इससे जय प्रकाश जी को निराशा हुई, जय प्रकाश जी ने उनसे पूछा- ‘‘क्या बात है, आप क्यों मंत्री नहीं बनना चाहते हैं’’? तब चन्द्रशेखर जी ने उनसे कहा- ‘‘कि आप मेरे विचारों को जानते हैं, मैं उस मंत्रिमण्डल का सदस्य नहीं बन सकता, जहाँ मैं प्रधानमंत्री से सहमत नहीं हँं। अगर आप प्रधानमंत्री से इस हद तक सहमत नहीं हैं, जो उनके साथ चल सकें, तो ऐसे मंत्रिमण्डल में शामिल होना न तो नैतिकता है और न ही ईमानदारी’’। यह विचार इस बात का द्योतक है कि चन्द्रशेखर जी राजनीति में रहते हुए भी, सत्ता के मोह से कितने दूर थे और सिद्धान्तों के कितने दृढ़ थे। वे कभी इन विचारों के नहीं थे, कि जिसके मंत्रिमण्डल में जायं, उसी की जड़ को खोदने की कोशिश करें। चन्द्रशेखर जी ने कभी नहीं सोचा था कि वे प्रधानमंत्री बनेंगे या बनना चाहते थे, बस उनकी चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक ध् 203 204 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर इच्छा देश संवारने की थी। विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने, उनका समर्थन भारतीय जनता पार्टी के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी कर रही थी। यह सभी जानते हैं कि चैधरी देवीलाल से उनके आन्तरिक संबंध अच्छे नहीं थे। चैधरी देवीलाल को वी.पी. सिंह ने उप प्रधानमंत्री पद से हटा दिया था। चैधरी देवी लाल इस बात से रुष्ट थे, कि उनके वरिष्ठता के बाद भी उन्हें उप प्रधानमंत्री पद हटा दिया गया, उन्होंने पद से हटने के बाद एक विशाल किसान रैली आयोजित की उसके जवाब में वी.पी. सिंह ने मण्डल कमीशन लगाया। मण्डल कमीशन के प्रतिक्रियास्वरूप भारतीय जनता पार्टी की रथ-यात्रा निकली और यह भारतीय राजनीति को किन दिशाओं में ले गई वह आज इतिहास के पन्नों में दर्ज है। पूरा देश जल रहा था, लोग आत्मदाह कर रहे थे, मन्दिर-मस्जिद जलाये जा रहे थे, भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत ही खराब स्थिति में थी, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अमेरिका-ईराक के बीच युद्ध चल रहा था, भारत की बैलेन्स आफ पेमेन्ट की स्थिति बहुत खराब थी, देश अगला चुनाव नहीं झेल सकता था, क्योंकि वी.पीसिंह की सरकार 11 महीनों में ही गिर गयी थी। भारतीय जनता पार्टी ने अडवाणी जी के गिरफ्तार होने पर वी.पी. सिंह से अपना समर्थन वापस ले लिया था। काँग्रेस चाहती थी कि चन्द्रशेखर जी सत्ता सम्भालें, काँग्रेस ने अपना समर्थन दिया। चन्द्रशेखर जी ने 11 नवम्बर, 1990 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, उस दिन देश में 70-75 जगहों पर कफ्र्यू लगा हुआ था। युवक आत्मदाह कर रहे थे। उनका प्रथम प्रयास यह था कि युवाओं की भावनाओं को शांत किया जाये, शांति बहाल की जा सके और उन्होंने किया भी। देश अपनी शांति की राह पर बहुत जल्द लौट आया। यह बात बहुत से लोगों को अच्छी नहीं लगी। प्रधानमंत्री के रूप में चन्द्रशेखर जी ने अधिकारियों को पूरी छूट दी, उन्होंने कहा कि वे बात-बात पर उनसे सलाह न लें, वे अपनी जिम्मेदारी समझें ओर नियमों से कार्य करें। यहाँ पर एक उदाहरण बताना प्रासंगिक होगा जो उनकी दृढ़ता को, उनकी निष्पक्षता को, उनकी ईमानदारी को बताता है- ‘एक दिन उनके आवास पर प्रवर्तन निदेशालय एवं सी.बी.आई. के कुछ अधिकारी आये, वे चन्द्रशेखर जी से मिलना चाहते थे, सुबह का समय था, चन्द्रशेखर जी ने उन्हें बुलाया और पूछा क्या बात है, उन अधिकारियों ने कहा कि चन्द्रास्वामी विदेश से आ रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार करना चाहते हैं, तो चन्द्रशेखर जी ने कहा कि इसमें मुझे क्या करना है? इस पर उन अधिकारियों ने कहा कि ऐसे मामलों में प्रधानमंत्री से सलाह ली जाती है, इस पर चन्द्रशेखर जी ने कहा कि अगर आप जरूरी समझते हैं, और यह हर पहलू से सही है, तो आप इस पर फैसला लीजिए, अगर आप सही फैसला लेंगे तो कोई भी व्यक्ति आप पर दबाव नहीं डालेगा। यह था चन्द्रशेखर जी का दृढ़ व्यक्तित्व एवं निर्णय लेने की क्षमता। उन्होंने अपने कार्यकाल में दो मुख्यमंत्रियों को उनके पद से हटाया, और हटाने का मुख्य कारण राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ था। एक मुख्यमंत्री जो उत्तरी-पूर्वी प्रदेश से आते थे, चन्द्रशेखर जी से मिलने आये। यह उनकी औपचारिक मुलाकात थी। बातो-बातों में चन्द्रशेखर जी ने कहा कि- ‘‘आपके प्रदेश में बहुत आतंकवाद का जोर है आप उसे क्यों नहीं समाप्त करते’’? इस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि- ‘‘आतंकवादी जंगलों में छुपे हैं एवं उनसे लड़ना कठिन है’’ चन्द्रशेखर जी ने कहा- ‘‘उन पर हवाई हमले क्यों नहीं किये जा सकते हैं? क्योंकि आतंकवादी आम आदमियों को मार रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि हवाई हमले तो केन्द्र सरकार ही कर सकती हैं चन्द्रशेखर जी ने कहा कि ठीक हैं। मैं कुछ करता हँं और उन्होंने वायु सेना के अधिकारियों को बुलाया और इस पर वार्ता की। शाम को 4.00 बजे आईबी. के चीफ ने आकर चन्द्रशेखर जी को यह बताया कि- ‘‘हवाई हमले के संबंध में क्या आपकी वार्ता मुख्यमंत्री से हुई है, तो इन्होंने कहा- ‘‘हाँ हुई है। इस पर आई.बी. के अधिकारियों ने बताया कि-सारे आतंकवादी जंगलों से निकल कर प्रदेश से सटे दूसरे देश में चले गये हैं। चन्द्रशेखर जी को इस पर बहुत ही निराशा हुई और यही मुख्य कारण उस मुख्यमंत्री को हटाने का रहा। ऐसी दृढ़ता और ठोस इरादे वाले व्यक्ति का नाम चन्द्रशेखर है। चन्द्रशेखर जी की सरकार हरियाणा के दो सिपाहियों की जासूसी के मुद्दे पर चली गयी। यह मानना कठिन है कि अगर कोई प्रधानमंत्री किसी की जासूसी करायेगा तो क्या वह दो सिविल पुलिस सिपाहियों की सहायता लेगा, जबकि उसके पास अनेक एजेंसियाँ उपलब्ध हैं। वास्तव में खुफिया पुलिस मात्र एक बहाना था उनकी सरकार के काँग्रेस का समर्थन लेने के पीछे बहुत से कारण उपलब्ध दिखाई पड़ते हैं। उन कारणों में संभवतः कैबिनेट सचिव का चयन, राज्यपालों की नियुक्ति और बाबरी मस्जिद के हल के निकट पहुँचना भी है। चन्द्रशेखर जी के बड़प्पन की बात जब याद आती है तो अनेक संस्मरण सामने आते हैं। कैसे वह व्यक्ति पार्टियों की नीतियों के विरोध में हिमालय सा चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक ध् 205 206 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर अटल परन्तु कभी भी उन राजनीतिक पार्टी के नेताओं के विरुद्ध कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी से लेकर अनेक नेताओं की नीतियों का उन्होंने विरोध किया, परन्तु व्यक्तिगत रूप से उनके सुख-दुःख में सदैव शामिल रहे। उनका मानना था कि हम राजनीति में 10 से 15 प्रतिशत ही राजनीति करते हैं, जबकि 85 से 90 प्रतिशत चीजें व्यक्तिगत सम्बन्धों का होता है। एक ऐसा ही संस्करण पं. जवाहरलाल नेहरू के साथ का है। 1962 में चन्द्रशेखर जी संसद में आ गये थे, उनकी नेहरू जी से व्यक्तिगत मुलाकात नहीं हुई थी, वे नेहरू जी की बहुत सारी नीतियों के आलोचक थे। उन्होंने इस स्मरण को मुझे सुनाया था। चन्द्रशेखर जी ने मुझसे कहा कि नेहरू जी के व्यक्तित्व में एक अनुपम आकर्षण था और उन्हें पढ़ने का बहुत शौक था। चन्द्रशेखर जी उस समय युवा थे और संसद में भी थे। चीन ने भारत पर 1962 में आक्रमण किया। चन्द्रशेखर जी ने चीन के आक्रमण के समय संसद में प्रश्न उठाया और नेहरू की नीतियों पर कटु कटाक्ष भी किया, परन्तु इस बार आश्चर्य चकित रहने की बारी चन्द्रशेखर जी की थी। जिस गम्भीरता और मृदुलता से पं. नेहरू ने आश्वासन भरा उत्तर दिया वह अविस्मरणीय है। कैरो साहब द्वारा कुछ अनियमितता के संबंध में अनेक प्रश्न संसद में किये जा रहे थे। उन्हीं एक प्रश्न के जवाब में प्रधानमंत्री ने गुस्से में जवाब दिया कि- ‘‘पार्टी समिति की रिपोर्ट गोपनीय है और उसे सदन के समक्ष नहीं रखा जा सकता’’। चन्द्रशेखर जी बहुत देर से इस विषय में पूरक प्रश्न पूछने के लिए खड़े हो रहे थे, किन्तु अध्यक्ष डाॅ. जाकिर हुसैन समय नहीं दे रहे थे। प्रश्नकाल समाप्त हो गया। श्री चन्द्रशेखर जी ने व्यवस्था का प्रश्न उठाया कि- प्रधानमंत्री सदन में गलत बयानी कर रहे हैं और सदन को गुमराह कर रहे हैं, तो क्या मुझे उनके गलत बयान को चुनौती देने का अधिकार नहीं है? डाॅ. जाकिर हुसैन कुछ देर तक चुप रहे संभवतः चन्द्रशेखर जी की बातों का मनन किया और बोले कि दूसरे दिन प्रश्नकाल के बाद इस बिन्दु को उठा सकूँगा। चन्द्रशेखर जी ने इसे स्वीकार कर लिया। इस बात को हुए आधा घन्टा भी नहीं बीता होगा कि नार्थपेई राज्यसभा की लाॅबी में आये तथा अनौपचारिक रूप से अपना परिचय दिया और कहा कि प्रध् ाानमंत्री जी ने उनसे कहा है कि उस नौजवान दोस्त से जाकर पूछो कि किस गलत बयानी का मुझ पर इल्जाम लगा रहे हैं? मामला साधारण सा था, मैंने उनसे कहा कि जिस रिपोर्ट का जिक्र आया है उस पर बहुत पहले ही कार्यसमिति में विचार-विमर्श हो चुका है और पूरी रिपोर्ट समाचार पत्रों में छपी हुई है। प्रधानमंत्री जी कैरो की प्रतिष्ठा बचाने का व्यर्थ प्रयास कर रहे हैं। बात यही समाप्त हो गई। दूसरे दिन प्रश्नकाल के बाद मैंने इस विषय को उठाया। पं. जी धीरे से उठे और अंग्रेजी में उन्होंने बड़ी गम्भीरतापूर्वक अध्यक्ष जी से कहा कि मुझसे भूल हुई है और सदन के सामने उन्होंने खेद प्रकट किया। यह संस्मरण दो बिन्दुओं को दर्शाता है। क्या बड़प्पन था पं. नेहरू का और कितने प्रखर थे चन्द्रशेखर जी? ऐसा संभवतः आज के सदन में नहंी दिखाई पड़ता। मेरा आज भी मानना है कि चन्द्रशेखर जी एक युग पुरुष थे। अपनी भारत यात्रा के क्रम में ही करीब 6 जून 1983 की बात होगी, उन्होंने यह समझ लिया कि भारतवर्ष में अगर भविष्य में कोई महत्वपूर्ण विषय होगा तो वह है जल का। उन्होंने जल संरक्षण के ऊपर बहुत कार्य किये। भारत यात्रा एक सफल यात्रा थी, जिसने पूरे देश को हकीकत से रूबरू करा दिया। जब वे तमिलनाडु के एक पहाड़ी क्षेत्र पर यात्रा कर रहे थे, रात्रि का समय था, एक वृद्ध महिला लालटेन लेकर खड़ी थी। जब चन्द्रशेखर जी उनके पास पहुँच तो महिला ने कहा कि आजादी के 40 वर्ष तो बीत गये हैं, पानी कब दोगे? चन्द्रशेखर जी को यह सवाल अन्दर तक झकझोर गया। जब वे दिल्ली आये तो पहली बैठक में उन्होंने पानी पर सवाल खड़ा किया। ऐसे बहुत सारे संस्मरण हैं, जिसे लिखा जा सकता है, परन्प्तु समस्त बिन्दुओं को, जो उनकी भारत यात्रा के दौरान आए उन्हें देखते हुए पाँच मुख्य बिन्दुओं को चन्द्रशेखर जी ने क्रमबद्ध किया, ये थे- जल, कुपोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक समरस्ता। चन्द्रशेखर जी को भारत यात्रा के बाद राजनीति के प्रति आकर्षण कम होने लगा और वे इन्हीं बिन्दुओं पर काम करना चाहते थे और भारत यात्रा केन्द्र का निर्माण किया। भारतवर्ष में अनेक भारत यात्रा केन्द्रों का निर्माण किया गया, परन्तु मुख्य भोंड़सी भारत यात्रा केन्द्र का संस्मरण याद आता है। भोंड़सी हरियाणा में है। हरियाणा सरकार ने चन्द्रशेखर जी को यह जमीन भारत यात्रा केन्द्र खोलने के लिए दी थी। यह स्थान काफी उजाड़ था जहाँ चन्द्रशेखर जी ने करीब 90 हजार से ऊपर वृक्षारोपण किया और जल संरक्षण का अद्वितीय कार्य किया। यह केन्द्र मेरे विचार से भारतवर्ष के अनुपम आकर्षण केन्द्रों में एक होगा। इसी राग-द्वेष से एक जनहित याचिका डाली गयी, जिस पर अदालत चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक ध् 207 208 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने अपना फैसला सुनाया, उस फैसले के अनुसार भारत यात्रा केन्द्र को ग्राम पंचायत के हवाले कर दिया गया एवं 2002 से यह केन्द्र उनके हवाले है। बड़ी बिडम्बना इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट के जिस न्यायाधीश ने यह निर्णय पारित किया वह अपनी सेवानिवृत्त के बाद 72 घन्टे के अन्दर ही भारत सरकार के बहुत ही उच्च स्तरीय प्रतिनियुक्ति पर चले गये। यह इस बात को बताता है कि भारतीय राजनीति के इस भीष्म पितामह के पीछे कितने कुचक्र चले जा रहे थे। चन्द्रशेखर जी ने बड़े ही विरक्त भाव से समस्त चीजों को लिया। मैंने उनमें कभी भी किसी भी चीज के प्रति आशक्ति नही देखी। भोंडसी भारत यात्रा केन्द्र के जाने के बाद उन्हें इस बात का मलाल नहीं था कि यह आश्रम उनसे क्यों छीन लिया गया, परन्तु इस बात का मलाल अवश्य था कि जिन लोगों की उन्होंने मदद की, शिखर तक पहुँचाया उन्होंने उनकी पीठ पर वार क्यों किया? वे रुके नहीं, दूसरे दिन से ही दूसरे भोंडसी के निर्माण में लग गये। चन्द्रशेखर जी हर रोज पैदा नहीं होते, हर वर्ष पैदा नहीं होते, ऐसा व्यक्ति तीन-चार शताब्दियों के बाद पैदा होते हैं। समाज में बदलाव लाता है और बिना किसी चीज की लालसा किये हुए इस दुनिया से चला जाता है। उन्होंने जितने लोगों के लिए किया है, मैं उन सभी की तरफ से चन्द्रशेखर जी को अपनी शृद्धांजलि देता हँं। चन्द्रशेखर जी मेरे आदर्श, मेरे पूज्य एवं सच्चे राष्ट्रदृष्टा थे। उनकी पूरी जिन्दगी को देखते हुए मुझे वसीम बरेलवी की दो पंक्तियाँ याद आती हैं- खुले छत के दिये कबके बुझ गये होते! कोई तो है, जो इन हवाओं के पर कतर रहा है।। चन्द्रशेखर जी सच्चे मायने में एक राष्ट्र पुरुष थे एवं भारत के अनमोल रत्न थे। (लेखक कर्मोपुर, हाजीपुर, बिहार के निवासी हैं और चन्द्रशेखर जी के निकटस्थ लोगों में रहे हैं)