वह राष्ट्रपुरुष थे

चितरंजन सिंह  


चन्द्रशेखर जी के बारे में लिखना मेरे लिए आसान नहीं है, उनसे मेरा संबंध राजनीतिक नहीं व्यक्तिगत था। उनके स्नेह के वशीभूत मैं धीरे-धीरे उनके करीब गया। मैं मानवाध्ािकार कार्यकर्ता हूँ। मुझे याद है बलिया में ‘भूख से मौत’ पर हमारी बलिया इकाई ने ध्ारना और प्रदर्शन का आयोजन किया था। चन्द्रशेखर जी उस दिन बलिया में थे। उनको जब पता चला तो जिलाध्ािकारी कार्यालय पर आए और ध्ारने प्रदर्शन को संबोध्ाित भी किया। उन्होंने कहा कि अभी जिलाध्ािकारी के यहाँ हमारी बैठक है उसमें इस मुद्दे को उठाऊँगा। उन्होंने उठाया भी और तत्काल भूख से मौत के भुक्तभोगी परिवार को सहायता भी मिली। बलिया में कोका कोला की फैक्ट्री लगी थी। जिसको बंद कराने को लेकर आन्दोलन चल रहा था। हमारा संगठन पीयूसीएल (लोक स्वतंत्र संगठन) भी आन्दोलन में शामिल था। एक दिन हिन्दुस्तान दैनिक के एक पत्रकार डाॅअखिलेश सिन्हा ने उनसे आन्दोलन के बारे में बातचीत की जिसमें उन्होंने कहा कि ‘फैक्ट्री को ढहा देना चाहिए मैं आन्दोलन के साथ हूँ’, संयोगवश कुछ दिनों बाद फैक्ट्री बंद करनी पड़ी। आन्दोलनकारी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करने में वे हमेशा आगे रहते थे और उनकी मदद भी करते रहते थे। देश के विकास के बारे में भी उनकी अपनी दृष्टि थी। किस तरह देश को गढ़ना है और किस ओर उसे ले जाना है, उसके बारे में उनकी अपनी सोच थी। दुर्भाग्य से प्रध्ाानमंत्री बने भी तो बहुत कम समय के लिए, इसलिए अपनी योजनाओं को नहीं कर सके परन्तु उनके भीतर छटपटाहट और व्याकुलता बराबर बनी रहती थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में देश के चार प्रान्तों में चार जिलों की जनता में अपने संघर्ष के बलबूते अंग्रेजों को खदेड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया था। उसमें बलिया सहित पश्चिम-बंगाल, महाराष्ट्र के जिले शामिल थे, नरसिम्हा राव के प्रध्ाानमंत्री रहते उन चार जिलों में शहीद स्थल बनाने का निर्णय लिया गया और एक-एक करोड़ रुपया इस मद में आवंटित किया गया। चन्द्रशेखर जी ने बलिया के निकट बंसतपुर गाँव में जमीन खरीद कर निर्माण शुरू कराया। शहीद स्थल में पुस्तकालय, वृद्धाश्रम, किसानों को शिक्षित-दिक्षित करने के लिए एक केंद्र, एक तरह से उसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर निर्माण कार्य आरम्भ कराया। उसमें बच्चों के खेलने के लिए तमाम साध्ान भी उपलब्ध्ा कराए। प्रसिद्ध सुरहा ताल झील के किनारे एक सुरभ्य-स्थल विकसित होने लगा। यह बताना आवश्यक है कि महाराष्ट्र के बारहोली, पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर सहित कहीं भी अब तक काम भी आरम्भ नहीं हो सका परन्तु चन्द्रशेखर जी के लगन का ही परिणाम है कि बलिया में शहीद स्मारक का निर्माण शुरू हुआ परन्तु दुर्भाग्यवश चन्द्रशेखर जी को बीमारी ने आ घेरा और फिर निर्माण कार्य ठप पड़ गया। चन्द्रशेखर जी के सपनों का शहीद स्मारक वीरान हो गया है। कोई उसकी खोज-खबर लेने वाला नहीं है। राष्ट्रीय मसलों पर भी चन्द्रशेखर जी की अपनी सोच थी। खालिस्तान आन्दोलन के दौरान जब भिण्डर वाला के नेतृत्व में स्वर्णमन्दिर पर आतंकवादियों ने कब्जा कर लिया तो श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी ने आतंकवादियों को वहाँ से निकालने के लिए फौज से बात की और ‘आपरेशन ब्लूस्टार’ की योजना बनी। चन्द्रशेखर जी को जब इस योजना के बारे में पता चला तो वे श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी से मिले और उन्होंने कहा कि ‘सिखों का इतिहास है कि जिन्होंने भी स्वर्णमन्दिर पर हमला किया उसे उन्होंने समाप्त कर दिया, इसलिए आप ऐसा न करें। परन्तु आपरेशन ब्लूस्टार जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई और परिणामस्वरूप श्रीमती गाँध्ाी को उन्हीं के सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी। देश को उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। देश में भारी पैमाने पर सिखों की निर्मम हत्या की गयी जिसमें हजारों की संख्या में हत्या हुई। चन्द्रशेखर जी ने ‘आपरेशन ब्लूस्टार’ का खुलेआम निन्दा की और आग्रह किया कि देश को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इस विरोध्ा का खामियाजा श्रीमती गाँध्ाी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में चुकानी पड़ी। उन्हें भिण्डरवाला कहा गया परिणामस्वरूप वे चुनाव में पराजित हो गए, जिसका पछतावा उन्होंने कभी नहीं किया और कहते थे राष्ट्र के प्रति जो हमारा कर्तव्य था उसे हमने पूरा किया। ऐसा करना सबके बस का वह राष्ट्रपुरुष थे ध् 215 216 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर नहीं है। यह चन्द्रशेखर ही कर सकते थे और उन्होंने इसकी कीमत भी चुकायी। काँग्रेस पार्टी की नीतियों के खिलाफ 1974 में जब जे.पी. आन्दोलन शुरू हुआ तो उन्होंने श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी से जे.पी. के बीच बात करानी चाही परन्तु श्रीमती गाँध्ाी ने वैचारिक आध्ाार गढ़ लिया कि यह प्रतिक्रियावादी आन्दोलन है। परिणामतः चन्द्रशेखर खुल कर जे.पी. के साथ खड़े हुए आपात्काल लगा। जे.पी. के साथ चन्द्रशेखर भी गिरफ्तार कर लिए गए उस समय वे काँग्रेस में थे परन्तु निरंकुशता के खिलाफ खड़े होने में तनिक भी देरी नहीं की क्योंकि देश को बचाने का अभियान चल रहा था। ऐसा विद्रोह चन्द्रशेखर ही कर सकते थे। चन्द्रशेखर जी जैसे बिरले ही राजनेता हुए हैं जिन्होंने डंके की चोट पर राष्ट्रविरोध्ाी नीतियों का विरोध्ा किया और उसकी भारी कीमत भी चुकायी। चन्द्रशेखर जी समृद्ध परिवार से नहीं थे। उनको परिवार के लिए भी कुछ करने की जरूरत थी परन्तु उन्होंने नरेंद्र देव जी के आह्वान पर शोध्ा करना छोड़ सोशलिस्ट आन्दोलन में सक्रिय हो गए। उनके परिवार को भारी अभावों से गुजरना पड़ा परन्तु चन्द्रशेखर जी के सामने देश के प्रति भी कर्तव्य था और उन्होंने उस कर्तव्य का भी निर्वाह किया, परिवार के बलिवेदी को चिन्ता नहीं की। वह निश्चित ही राष्ट्रपुरुष थे। कौन आता है कौन जाता है, इसकी परवाह उन्होंने कभी नहीं की और अकेले उस रास्ते पर बढ़ते गए, जिससे उन्होंने सोचा था, जो उनका स्वप्न था। (लेखक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं)

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