चन्द्रशेखर: कभी न डूबने वाली किरण

यूवी सिंह  


कहा जाता है कि कुछ व्यक्तित्व इतिहास गढ़ता है और कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो इतिहास गढ़ते हैं। भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर का व्यक्तित्व भी इतिहास गढ़ने वाले व्यक्तित्व की श्रेणी में आता है। इस बहुआयामी व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण आयाम था, दृढ़ता। उनकी संपूर्ण जीवन यात्रा इस दृढ़ता का बोध हर कदम पर होता है। इसके बल पर उन्होंने जब जो चाहा प्राप्त किया। जो नहीं पाया, उसके लिए जीवनपर्यंत प्रयास करते रहे। वह न कभी थके और न कभी रुके। अनवरत चलते रहे सत्य और न्याय के उस पथ पर जिसे उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव से ग्रहण किया था। जूझते रहे इसके लिए ठीक उसी तरह जैसे जयप्रकाश नारायण आजीवन जूझते रहे। यह किसी से छिपा नहीं है कि राजनीति में पदप्राप्त करने के लिए सबसे आसान रास्ता है, जाति, धर्म और फरेब का रास्ता। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जन्म से ही इस रास्ते के ही विरोध में थे। संभवतः इसी नैसर्गिक प्रतिभा की वजह से उनके माता-पिता ने उनका नाम चन्द्रशेखर रखा था। आमतौर पर राजनेताओं का दृष्टिकोण दो बिंदुओं पक्ष और विपक्ष पर आधारित होता है। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर इस पक्ष-विपक्ष के बंधन से अलग थे। वह हर सवाल पर निष्पक्ष होकर सोचते थे। और, जो सच होता था, उस पर मजबूती से अमल करते थे। कारण? राजनीति का अर्थ उनके लिए राज करने की नीति नहीं थी। राजनीति उनके लिए माध्यम थी जनसेवा और अन्याय-विहीन समृद्ध भारत की स्थापना का। इसी लक्ष्य के तहत उन्होंने आवाज उठायी तो उनके नाम के साथ युवा तुर्क जुड़ गया। वह सत्ता के गलियारे में रहे हों या आम आदमी के बीच, हर क्षण अपने लक्ष्य को जीते रहे। जनता पार्टी का अध्यक्ष होने पर भी वह अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहे और प्रधानमंत्री होने के बाद भी इसी पथ पर चले तो डरी-सहमी काँग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। वह जब अपनी पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी के अकेले सांसद थे, तब भी सत्य के पथ से डिगे नहीं। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर की जीवन यात्रा में ठहराव शब्द तलाशे नहीं मिलता है। उनका संपूर्ण जीवन गतिशील था। उनकी शैली अवश्य परिवर्तनशील थी। खासतौर से क्षमा के मामले में यह परिवर्तनशीलता उनकी जीवन यात्रा में उनके अभिन्न अंग के रूप में नजर आती हैं। उन्होंने अपनी एक पुस्तक का नाम भी रखा, डायनमिक्स आफ सोशल चैंज। उन्होंने अपने जेल-काल के समय को भी बर्बाद नहीं होने दिया। उन्होंने डायरी लिखी जो आज एक प्रमाणिक दस्तावेज के रूप में लोगों के बीच है। प्रायः लोगों के रास्ते में जब कोई बड़ा गतिरोध आता है, जब सामने रास्ता दिखना बंद हो जाता है तो लोग निराश होकर बैठ जाते हैं। उनकी गति पर विराम लग जाता है। लेकिन, राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ठीक इसके विपरीत थे। उनके रास्ते में जब कोई गतिरोध आया, वह और सशक्त होकर आगे बढे़। हर उत्पन्न गतिरोध से उन्होंने सफलता की ओर जाने वाला एक रास्ता तलाशा। वह निर्भय थे। वह खामोश गाजीपुर के शेर डूब सकता हूँ मगर खौफ से तूफानों के, ये न समझो कि मैं कश्ती से उतर जाऊंगा। सच तो यह है कि राष्ट्रपुरुष को कभी हार का भय नहीं रहा। भय उन्हें देखकर खुद-ब-खुद भयभीत हो जाता था। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर की इन विशेषताओं की वजह से उनके विरोध भी उनका सम्मान करते थे। पक्ष हो या विपक्ष, विषम परिस्थितियों में उनसे सलाह लेते थे। उनके विरोध भी उनकी वाक्यपटुता और बात कहने की तीखी शैली का लोहा मानते थे। इसलिए जब वह संसद में बोलने के लिए खड़े होते थे तो सन्नाटा छा जाता था। इसी विशेषता की वजह से उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी मिला। उन्हें भगवान अवधूत राम का असीम स्नेह प्राप्त था। उन्हें जब कभी समय मिला, भगवान अवधूत के आश्रम जरूर जाते थे। वहाँ जाकर एक कुशल राजनेता खुद-ब-खुद एक आध्यात्मिक पुरुष बन जाता था। आध्यात्मिकता और राजनीतिक कार्यकुशलता का समिश्रण उनके व्यक्तित्व में हमेशा झलकता रहता था। एक ऐसा व्यक्तित्व जो सिर्फ बैठा रहे, कुछ न भी कहे तो सब कुछ कह दे। जीवन की सांध्य बेला में वे प्लाज्मा कैंसर से ग्रसित हो गए थे। 8 जुलाई 2007 उनके जीवन का अंतिम दिन था। उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी। आज राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर दैहिक रूप से हमारे चन्द्रशेखर: कभी न डूबने वाली किरण ध् 235 236 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार, उनके कृत्य हम सभी को हमेशा प्रकाश देते रहेंगे। इस प्रकाश से ऐसा बोध होता है जैसे वह खुद बोल रहे हैं। मैं वो सूरज हूँ न डूबेगी कभी जिसकी किरण, रात होगी तो सितारों में बिखर जाऊंगा। (लेखक भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं)

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