अनन्तकाल तक प्रेरणादायक रहेंगे चन्द्रशेखर

रविशंकर सिंह पप्पू  


राष्ट्रीयता की भावना अमूर्त विचार नही है। यह राष्ट्र के अध्ािसंख्य लोगों के रहन-सहन, दुःख-सुख, उनके व्यवहार, विचार और अंतः चेतना से एकाकार होने का विषय है। राजनीति के संक्रमण काल में भी राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर इसी भाव के तहत जन-जन में राष्ट्रीय भावना जगाने में लगे रहे। उनकी वैचारिक अभिव्यक्तियों में गरीबी, बेरोजगारी, पीड़ा, करुणा आदि शब्दों का बार-बार आना उनकी इस सोच के जीवंत प्रमाण हैं। वह इन शब्दों से इस महान देश को मुक्ति दिलाना चाहते थे। इसी वजह से जब श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया, प्रीवीपर्स समाप्त किया, कोयला और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तो चन्द्रशेखर जी ने उनका जम कर साथ दिया। जैसे ही श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी इस रास्ते से भटकीं, वह उनके विरोध्ा में खड़े हो गए। वह जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे लेकिन जन सवालों पर जनता के साथ रहे। राजनीति में हिस्सेदारी के सवाल पर युवाओं के साथ रहे। देश के समस्त गुण और दोषों को परखने के लिए वह भारत का भ्रमण करते रहते थे। लोगों का दुःख दर्द समझने और महसूस करने के लिए उन्होंने लम्बी-लम्बी पदयात्राएँ की। एक दृढ़ नेता और नेक इंसान की तरह वह घृणा और अन्याय मिटा देने का प्रयास करते रहे। वह जीवनपर्यंत जातिवाद, सांप्रदायिकता, गरीबी और बेबसी से जूझ रहे देश में नवीन अमृत संचार का प्रयास करते रहे। उन्होंने कहा कि हमारे आदर्श पुरुष राम किसी मन्दिर या मठ में नहंी बसते। उन्हें शबरी के जूठे बेर और गरीबों की जर्जर झोपड़ी में देखा जा सकता है। राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर ने अध्ाम कोटि के मनुष्य की भांति कभी अपने बारे में नहीं सोचा। उनकी सोच कभी मध्यम कोटि के मनुष्य की भांति अपने समाज तक ही सीमित नहीं रही। वह हमेशा इससे ऊपर उठ कर संपूर्ण प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सचेत रहते थे। उनकी तमाम रचनात्मक कृतियाँ इसकी प्रमाण हैं। अपने थोड़े दिनों के शासनकाल में उन्होंने बोध्ा कराया कि निहित स्वार्थों को त्याग कर कैसे पूरे राष्ट्र और समाज के लिए निर्णय लिए जाते हैं। वे निर्विवाद रूप से राष्ट्र के ध्ारोहर थे और रहेंगे। हमारा देश महान हैं। हमारी ध्ारती रत्न पैदा करने वाली है। अपने लम्बे ऐतिहासिक काल में इस ध्ारती ने अनेक ऐसे महापुरुषों को जन्म दिया जिन्होंने अपना सर्वस्य त्याग कर अपने राष्ट्र के लिए मर मिटने का संकल्प दिखाया। चन्द्रशेखर जी उसी परम्परा के एक कड़ी थे। देशवासियों के दुःखों, पीड़ाओं से अपने को एकाकार करके मानवीय संस्कृति को पूर्ण और व्यापक बनाने की जो महती साध्ाना उन्होंने की वह अनन्तकाल तक सत्य मार्ग के पथिकों के लिए स्फूर्तिदायक प्रेरणा का कार्य करती रहेगी। (लेखक विध्ाान परिषद के सदस्य हैं)

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