इस देश में केवल दो प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं जो किसी राजवंश या कुल के नाम पर नहीं, अपने कर्म और तप से देश व दुनिया की निगाह में शीर्ष पर पहुँचे। इसमें एक थे लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे थे, चन्द्रशेखर। शास्त्री जी को प्रारम्भिक शिक्षा के लिए नदी तैर कर भी जाना पड़ा। माटी का यह लाल जब देश का प्रधानमंत्री बना तो बार-बार आँख तरेरने और हमला करने वाले पाकिस्तान को उसकी मांद में पहुँचा दिया। ठीक इसी तरह चन्द्रशेखर जी को पढ़ने के लिए 15 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। जी हां, इसी बालक चन्द्रशेखर ने इस देश की पीड़ा को पढ़ने के लिए 4260 किलोमीटर के भूभाग को पैदल माप दिया। और, देश का प्रधानमंत्री बना तो पूरी दुनिया को एहसास करा दिया कि हम सोना गिरवी रख सकते हैं लेकिन देश का सम्मान नहीं। इस देश का दुर्भाग्य है कि दोनों ही असमय हमारे बीच से चले गए। दोनों का कार्यकाल थोड़े दिनों का रहा लेकिन दोनों ने आत्मसम्मान के साथ जीने का जो संदेश देश को दिया है, वह उसे भुलाया नहीं जा सकता है। शास्त्री जी से मेरी भेंट नहीं थी लेकिन यह लिखने में मुझे गर्व का बोध्ा हो रहा है कि राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर से मैं मिला था। उनसे मेरी पहली मुलाकात इलाहाबाद के जननेता अनुग्रह नारायण सिंह के आवास पर हुई। रतन सिंह जी के यहाँ उनके खाने का प्रबंध था। वहीं पर अनुग्रह जी ने मेरा परिचय श्री चन्द्रशेखर जी से कराया। परिचय के साथ ही चन्द्रशेखर जी ने कहा, आज देश संक्रमण काल से गुजर रहा है। आप जैसे नवजवानों को देश और समाज के लिए आगे आना चाहिए। मेरे गाँव रामपुर से भी उनका सीध्ाा लगाव था। इस गाँव के लोग उन्हें चाहते थे ओर लगता था कि चन्द्रशेखर जी भी इस गाँव को चाहते थै। यह चाह आज भी हमारे गाँव में श्री चन्द्रशेखर स्मारक ट्रस्ट के रूप में बनी हुई है। सोना गिरवी रखा, सम्मान नहीं ध् 253 254 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर विधान परिषद सदस्य और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री यशवंत सिंह के प्रयास से यह ट्रस्ट चन्द्रशेखर जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने में लगा है। राष्ट्रपुरुष पुस्तक भी इस प्रयास की एक कड़ी है। इस प्रयास के संबंध में मुझे केवल इतना कहना है, मेरी कोशिश है कि यह रोशनी वहाँ जाए, जहाँ काबिज है अँधेरा अभी भी बस्ती पे। (लेखक रामपुर गाँव के निवासी और पत्रकार हैं)