आज भी अतुलनीय हैं चन्द्रशेखर

अनिल सिंह  


चन्द्रशेखर जी देश के आठवें प्रधानमंत्री थे। 11 नवम्बर, 1990 को जब वे शपथ ले रहे थे, देश जल रहा था। मण्डल कमीशन की सिफारिशें लागू करने से भड़के युवा सड़कों पर आत्मदाह कर रहे थे। जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। उस दिन 70-75 स्थानों पर कफ्र्यू लगा हुआ था। अपनी आत्म कथा ‘‘जिन्दगी का करवां’’ में चन्द्रशेखर जी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री का पद उन्होंने एक प्रकार से कत्र्तव्य-पालन की भावना से स्वीकार किया था। उन्हें विश्वास था कि देश जिस स्थिति में है वह उसे बदल सकते हैं। तात्कालिक समस्याओं का हल उन्हें असंभव नहीं लगा। उनकी इस ध्ाारणा को बल मिला। वे चार महीने पूरी तरह और तीन महीने काम चलाऊ प्रधानमंत्री रहे। इन सात महीनों में सांप्रदायिक दंगे और मण्डल कमीशन की आग में जलने वाले देश में शांति व कानून के शासन की आहट सुनायी देने लगी थी। चन्द्रशेखर जी की सरकार पर ब्रिटेन के एक अखबार ने लिखा था कि यह जो सरकार है उसके बारे में शुरू में धारणा थी कि काँग्रेस की बैसाखी पर है इसलिए कुछ फैसले नहीं लेगी, लेकिन सरकार जिस तरह से फैसले ले रही है, ऐसा लगता है कि जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे प्रभावी सरकार है। चन्द्रशेखर जी भले ही केवल सात महीने के लिए देश के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन वे सदैव प्रधानमंत्री की तरह देश की बेहतरी के लिए सोचते रहते थे। उनके निधन के बाद ‘हिन्दू’ अखबार के जाने-माने टिप्पणीकार हरीश खरे ने अपने लेख में कहा था- ‘‘अपने जीवन के अन्तिम कुछ वर्षो में उनकी आवाज बहुत मन्द हो गयी थी और वे हस्तक्षेप कर सकने में असमर्थ थे। लेकिन उनकी राय निश्चित रूप से बुद्धिमतापूर्ण और सन्तवाणी थी। वे एक साल से कम समय के लिए प्रधानमंत्री रहे, लेकिन उनकी वैश्विक दृष्टि सदा प्रधानमंत्री की तरह ही थी। इस आधार पर केवल कुछ समय तक प्रधानमंत्री रहना और प्रधानमंत्री की तरह आशावादी बने रहना बलिया के इस व्यक्ति को अतुलनीय बनाता है। आज भी अतुलनीय हैं चन्द्रशेखर ध् 255 256 ध् राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर जी बेलाग, बैलौस और जनमूल्यों के लिए सीधे-सपाट शख्सियत थे। ये हमेशा विरोधाभासों में जिए, लेकिन सोच और समझ बिल्कुल साफ रही और बेदाग भी। उनका व्यक्तित्व नारियल की तरह था। बाहर से सख्त और अन्दर से नरम। वे सादगी, ज्ञान, अपरिग्रह, आस्तेय जैसी तमाम चीजों से गुथा हुआ एक ऐसे साधारण व्यक्तित्व थे जो असाधारण प्रभाव छोड़ते थे। भारतीय राजनीति की उनकी समझ बहुत गहरी थी। गांधी व अम्बेडकर की व्याख्या वे चन्द शब्दों में करते थे। वे कहते थे-गांधी सूट-कोट में पैदा हुए, लंगोट में भरे और अम्बेडकर लंगोट में पैदा हुए, सूट-कोट में भरे। यही अन्तर है गांधीवाद और अम्बेडकरवाद में। चन्द्रशेखर जी की राजनीतिक यात्रा आर्य समाज से शुरू हुयी थी। डी.ए.वी. हाई स्कूल व जीवन राम हाई स्कूल के छात्र जीवन में वे मऊ के आर्य समाज मन्दिर से गहरे जुड़े रहे। बाद में कम्युनिस्टों का साथ हुआ। लेकिन वहाँ भी उनका मन नहीं रमा। इण्टरमीडिएट की पढ़ाई करते समय ही वे कम्युनिस्टों से अलग हो गए। समाजवाद उनका सपना था। वे समाजवाद के रास्ते ही देश की भलाई देखते थे। सोशलिस्ट पार्टी-प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और काँग्रेस में रहते हुए वे कभी अपने सपने से दूर नहीं रहे और न ही कभी समझौता किया। 1971 के आम चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया गया था। शोषित और अपेक्षित समाज की भावनाओं के अनुरूप नया समाज बनाने का संकल्प दोहराया गया था। यह ऐसा आम चुनाव था जिसमें चन्द्रशेखर जी ने इन्दिरा गांधी के बाद देश में सबसे अधिक चुनावी दौरा किया था। इन्दिरा गांधी को प्रचण्ड बहुमत मिला था। लेकिन जब वे ‘गरीबी हटाओ’ के एजेण्डे से अलग हट कर पूँजीपतियों की बेहतरी की नीतियों का समर्थन करने लगीं तो चन्द्रशेखर जी ने उनके विरुद्ध ‘‘यंग इंडियन’’ में संपादकीय लिखा। अपने संपादकीय में उन्होंने कहा कि अगर सरकार अपने वायदे पूरे नहीं करती है तो जनतंत्र से लोगों का विश्वास हट जाएगा, स्वयं प्रधानमंत्री के प्रति अविश्वास का भाव पैदा होगा। जनता के विश्वास को तोड़ना एक खतरनाक खेल है। 1971 के बाद क्या हुआ यह देश जानता है। चन्द्रशेखर जी नागरिक समाज के पक्षधर थे। वे उपभोक्ता समाज का मुखर विरोध करते थे। उनका अर्थ दर्शन बहुत साफ था। उनकी हमेशा कोशिश यही रही कि भारत विश्व के बाजारवाद का शिकार न होने पाए। प्रधानमंत्रित्व काल में उनके द्वारा लिए गए तमाम निर्णय इस बात की वकालत करते हैं। आज चन्द्रशेखर जी नहीं है। लेकिन वे और उनकी सोच हमारे इर्द-गिर्द खड़ी है। आज जो लोग राजनीति के क्षेत्र में, समाज सेवा के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, उन्हें पहले से यह तय करना होगा कि यह नागरिक समाज के प्रतिनिधि बन कर काम करना चाहते हैं या उपभोक्ता समाज के प्रतिनिधि बन कर। चन्द्रशेखर जी ऐसे बड़े प्रश्नवाचक की तरह हमारे सामने खड़े हैं और खड़े रहेंगे। (लेखक बेरूआरबारी, बलिया के ब्लाक प्रमुख हैं)

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