इंसाफ के लिए सदैव लड़ते रहे राष्ट्रपुरुष

आदर्श प्रभा  


राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का युवा तुर्क उपनाम उनके व्यक्तित्व को प्रकट करने के लिये स्वयं में पूर्णतया सार्थक हैं। इसे जानने के लिए सर्वप्रथम युवा तुर्क का विश्लेषण अति आवश्यक है। तुर्क (आटोमन) साम्राज्य बहुत शक्तिशाली राज्यों में से था। तुर्क साम्राज्य के निरंकुश शासक अब्दुल हमीद द्वितीय के शासन को ध्वस्त करने के लिए वहाँ के विश्व विद्यालय के क्रांतिकारी छात्रों ने देश के पुराने निरंकुश शासन को ध्वस्त करके संसदीय जनतंत्र को फिर से स्थापित किया था। तब वहाँ के क्रांतिकारी छात्रों को युवा तुर्क कहा जाने लगा था। चन्द्रशेखर जी ने भी काँग्रेस के सर्वशक्तिमान समूह और खुद सर्वशक्तिमान का विरोध्ा कर काँग्रेस और काँग्रेस सरकार के रुख को आम जन की ओर मोड़ा। वह अदम्य साहसी, आदर्शवादी, ईमानदार और पारदर्शी सार्वजनिक जीवन के पर्याय थे। वह समाज के शोषित वर्ग और वंचित तबके के लिये सामाजिक बदलाव और नीतियों के प्रति संकल्पबद्ध थे। इसके लिए उन्होंने अपनी ही पार्टी और सरकार के विरोध्ा में भी मोर्चा खोलने में भी कोई परहेज नहीं किया। उनके आलोचक भी उनके इन सिद्धांतों से भलीभांति परिचित थे। जानते थे कि चन्द्रशेखर अपने वसूलों को ताक पर रख कर सत्ता के पीछे नहीं भागेंगे। इसलिए उनका नाम युवा तुर्क हो गया। वह बराबर राष्ट्र की सोचते थे। उन्होंने कहा, जनता ने देश में भयमुक्त होने के लिए आन्दोलन किया है। हम नहीं चाहते सरकार से कोई सशंकित हो, भयभीत हो। हम नहीं चाहते किसी की आजादी के ऊपर कोई खतरा आये। इस आजादी का मतलब-शोषण करने की आजादी नहीं, भ्रष्टाचार फैलाने की आजादी नहीं है। इस आजादी का मतलब घूसखोरी और तस्करी करने की आजादी भी नहीं है। ऐसे लोग जो यह समझते हों अगर गलतफहमी में हों कि इस आजादी का मतलब दलित वर्गों की और अध्ािक दबाने की कोशिश है तो वह लोग गलतफहमी में हैं और उनको उसी तरह से निराश होना पड़ेगा जिस तरह से कुछ महीने पहले बड़े शक्तिशाली लोग यह समझते थे इतिहास उन्होंने हमेशा के लिए अपनी मुट्ठी में कैद कर रखा है। सार्वजनिक जीवन में पक्ष हो या विपक्ष सभी चन्द्रशेखर जी का सम्मान करते थे। किसी भी समस्या से निपटने में उनके परामर्श को वरीयता देते थे। कारण वह निष्पक्ष रह कर परामर्श देते थे। उनका स्वभाव बेहद संयमित था। प्रध्ाानमंत्री बनने के बाद भी वह अपने कुशल और संयमित व्यवहार के लिए जाने जाते थे। चन्द्रशेखर जी का प्रध्ाानमंत्री कार्यकाल थोड़े दिनों का ही था। इस अल्पकाल में ही वह अपनी ईमानदारी, कर्मठता और राष्ट्रहित को ही प्राथमिकता देने की वजह से अमिट छाप छोड़ गए। इसलिए उनके नाम के साथ युवा तुर्क की जगह जुड़ गया, राष्ट्रपुरुष। वह प्रध्ाानमंत्री का पद छोड़ने के बाद भोंडसी आश्रम में ही रहना पसन्द करते थे। आश्रम की जमीन का विरोध्ा होने पर उन्होंने आश्रम का बड़ा हिस्सा सरकार को वापस कर दिया। उन्होंने देश की पीड़ा करीब से पढ़ने और उसके निदान के लिए जमीनीस्तर पर भी टीम तैयार करने को पदयात्रा की। लोगों से सीध्ो संवाद किया और इसे लगातार बनाए रखने के लिए भारत यात्रा केंद्रों की स्थापना की। वह स्पष्टवादी थे। अपने चुनाव में भी वह इसे लेकर समझौता नहीं करते थे। एक बार उनसे बलिया में बलिया के विकास को लेकर सवाल किया गया तो उसके जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘मैं नालियों को साफ़ कराने और सड़कों का निर्माण कराने के लिए यहाँ नहीं हूँ। मुझे पूरे देश की देखभाल करनी है। मैं भारतीय जनता से जुड़ी समस्याओं से जुड़े विषय के बड़े मुद्दों में व्यस्त हूँ। मैं भारत का प्रध्ाानमन्त्री हूँ।’’ अपने संसदीय क्षेत्र में यह सच केवल चन्द्रशेखर जी ही बोल सकते थे। वह ताउम्र इंसाफ के लिए लड़ते रहे। इस अग्निपथ पर उन्हें गैरों से नहीं, अपनों से भी लड़ना पड़ा। इस राष्ट्रपुरुष को मेरा शत-शत नमन। (लेखिका सोशल मीडिया की सक्रिय कलमकार हैं)

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