यादों- विचारों में चन्द्रशेखर

चन्द्रशेखर: असंख्य जड़ों-बर्राहों वाले शाश्वत वटवृक्ष

चंद दिनों पहले ही परंदवाडी गया था। यह पुणे के पास का चन्द्रशेखर जी का भारत यात्रा केन्द्र है। संजय पवार, दरोले जी और नाना उसे संभाल रहे है। यहाँ चन्द्रशेखर जी की अस्थियां रखी हैं। लगभग 35 एकड़ में फैले इस केन्द्र को कभी समाजसेवा और ग्रामीण विकास का बहुत महत्वपूर्ण केन्द्र बनाने की कोशिशें हुई थीं। जल संरक्षण, सिंचाई, वृक्षारोपण, रेशम बनाने, मत्स्यपालन, शीप फार्मिंग, ग्रामीण स्वास्थ्य आदि के कई कार्यक्रम यहाँ से शुरू किय

ओम प्रकाश सिंह

जो कहते थे, उसे जीते थे चन्द्रशेखर

प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का वह सम्मेलन मुम्बई में हुआ था। वहाँ पर चन्द्रशेखर जी को अब अपनी बात रखने का अवसर मिला तो उनके विचार सुन सभी स्तब्ध्ा रहे गए। पूरे सम्मेलन ने उनके विचारों का स्वीकार किया। आगे आने वाले सभी नेताओं ने अपने-अपने संबोध्ान में उनके विचारों की चर्चा की। और, इस चर्चा से मिली चन्द्रशेखर जी को एक राष्ट्रीय पहचान। यहाँ से चल पड़े वह समाजवाद के उस पथ पर। इस राह में उन्हें पद भी मिले पर ये पद उनके ऊपर कभी भारी न

प्रभाशंकर पाण्डेय

इंसाफ के लिए सदैव लड़ते रहे राष्ट्रपुरुष

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का युवा तुर्क उपनाम उनके व्यक्तित्व को प्रकट करने के लिये स्वयं में पूर्णतया सार्थक हैं। इसे जानने के लिए सर्वप्रथम युवा तुर्क का विश्लेषण अति आवश्यक है। तुर्क (आटोमन) साम्राज्य बहुत शक्तिशाली राज्यों में से था। तुर्क साम्राज्य के निरंकुश शासक अब्दुल हमीद द्वितीय के शासन को ध्वस्त करने के लिए वहाँ के विश्व विद्यालय के क्रांतिकारी छात्रों ने देश के पुराने निरंकुश शासन को ध्वस्त करके संसदी

आदर्श प्रभा

आज भी अतुलनीय हैं चन्द्रशेखर

चन्द्रशेखर जी देश के आठवें प्रधानमंत्री थे। 11 नवम्बर, 1990 को जब वे शपथ ले रहे थे, देश जल रहा था। मण्डल कमीशन की सिफारिशें लागू करने से भड़के युवा सड़कों पर आत्मदाह कर रहे थे। जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। उस दिन 70-75 स्थानों पर कफ्र्यू लगा हुआ था। अपनी आत्म कथा ‘‘जिन्दगी का करवां’’ में चन्द्रशेखर जी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री का पद उन्होंने एक प्रकार से कत्र्तव्य-पालन की भावना से स्वीकार किया था। उन्हें विश्वास था कि द

अनिल सिंह

सोना गिरवी रखा, सम्मान नहीं

इस देश में केवल दो प्रधानमंत्री ऐसे हुए हैं जो किसी राजवंश या कुल के नाम पर नहीं, अपने कर्म और तप से देश व दुनिया की निगाह में शीर्ष पर पहुँचे। इसमें एक थे लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे थे, चन्द्रशेखर। शास्त्री जी को प्रारम्भिक शिक्षा के लिए नदी तैर कर भी जाना पड़ा। माटी का यह लाल जब देश का प्रधानमंत्री बना तो बार-बार आँख तरेरने और हमला करने वाले पाकिस्तान को उसकी मांद में पहुँचा दिया। ठीक इसी तरह चन्द्रशेखर जी को पढ़ने के

वीरेन्द्र सिंह

चन्द्रशेखर: शाश्वत मूल्यों के संरक्षक

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जी के व्यक्तित्व से मेरा साक्षात्कार वर्ष 1984 में लालगंज, आजमगढ़ में हुआ। तत्कालीन लोकसभा चुनाव के दौरान निवर्तमान सांसद (स्व. श्री रामध्ान जी) के समर्थन में वहाँ एक जनसभा का आयोजन हुआ था। हम लोग उन्हें सुनने के लिये सभा में पहुँचे थे। चुनाव के कुछ ही दिन पूर्व तत्कालीन प्रध्ाानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी के दो अंगरक्षकों द्वारा जो संयोग से सिक्ख थे, उनकी हत्या कर दी गई थी तथा पूरे देश में कई

अनिल कुमार सिसोदिया

दृढ़ता, स्पष्टता और व्यापकता का अर्थ ही चन्द्रशेखर

बात 1975 की है जब हमारे स्कूल के दिन थे और मैं पहली बार राजनीतिक नारों से रुबरू हुआ था, जे.पी. का आन्दोलन शुरू हो चुका था और गली-गली युवाओं की टोली आपात्काल और इन्दिरा गाँधी के खिलाफ नारे लगा रही थी। सरकारी अधिकारी रहे हमारे पिता के दफ्तर से लेकर घर की बैठक में सिर्फ राजनीतिक चर्चाएँ होती थीं और बार-बार चन्द्रशेखर जी का नाम आता था। बलिया जिले के निवासी होने के कारण एक स्वाभाविक-सा लगाव हम सबका था, मगर फिर भी मैं चन्द्रशेखर का सि

उत्कर्ष सिन्हा

हम तुम्हारी राह पर चलते रहेंगे: श्री चन्द्रशेखर स्मारक ट्रस्ट

गाँव रामपुर, आजमगढ़ में चन्द्रशेखर जी तब भी राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर थे जब देश उन्हें युवा तुर्क कहता थे, जब वह लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पक्ष में श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी के खिलाफ मुखर होकर जनतंत्र के नायक हो गए थे, जब वह जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होकर देश के अध्यक्ष जी हो गए थे और जब वह देश के प्रध्ाानमंत्री होकर प्रध्ाानमंत्री चन्द्रशेखर हो गए थे। वह तब भी राष्ट्रपुरुष थे जब केवल सांसद और समाजवादी जनता पार्ट

ब्रजेश कान्दू

अनन्तकाल तक प्रेरणादायक रहेंगे चन्द्रशेखर

राष्ट्रीयता की भावना अमूर्त विचार नही है। यह राष्ट्र के अध्ािसंख्य लोगों के रहन-सहन, दुःख-सुख, उनके व्यवहार, विचार और अंतः चेतना से एकाकार होने का विषय है। राजनीति के संक्रमण काल में भी राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर इसी भाव के तहत जन-जन में राष्ट्रीय भावना जगाने में लगे रहे। उनकी वैचारिक अभिव्यक्तियों में गरीबी, बेरोजगारी, पीड़ा, करुणा आदि शब्दों का बार-बार आना उनकी इस सोच के जीवंत प्रमाण हैं। वह इन शब्दों से इस महान देश को म

रविशंकर सिंह पप्पू

दिल को छू गई भोजपुरी में बात

भारत की राजनीति में चन्द्रशेखर जी का नाम हमेशा आदर के साथ लिया जाएगा। उन्होंने शुचिता, सिद्धांत और मूल्यों की राजनीति की और अपने इन उसूलों से कभी समझौता नहीं किया। सार्वजनिक जीवन में जैसा कद चन्द्रशेखर का था, वैसा बहुत कम लोगों को प्राप्त होता है। सड़क से संसद तक उनकी स्वीकार्यता बेजोड़ थी। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि चन्द्रशेखर बहुत कम समय के लिए प्रध्ाानमंत्री की कुर्सी पर बैठ सके। यदि वह कुछ और दिनों तक प्रध

आदर्श प्रकाश सिंह

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