बात पंद्रह साल पहले की है। झोपड़ी में बैठे हुए थे। झोपड़ी यानी 3, साउथ एवेन्यू लेन का वह ठिकाना जिसका नाम झोपड़ी पड़ गया था। काफी लोग उनके सामने बैठे थे। चन्द्रशेखर जी को बतरस में आनंद आता था। यह उनका स्वभाव था। कभी वे मनोगत होते थे और कभी-कभार सुनने वालों को चैंकाते थे। ऐसा ही उस दिन हुआ जब उन्होंने कहा कि मैं एक ‘दकियानूसी’ भाषण करने जा रहा हूँ। जिन्हें वे बता रहे थे उनमें ज्यादातर समाजवादी धारा से जुड़े नेता थे। सुनने व
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