पाँचवे सार्क सम्मेलन (मालदीव) में व्याख्यान (21 नवम्बर, 1990)

अपने मेजबान महानुभावों का, विशेषकर अपने मित्र राष्ट्रपति श्री गयूम का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने हमारा भावपूर्ण सम्मान किया और शानदार खातिरदारी की। हम मालदीव में मिल रहे हैं जो सौंदर्य और शांति का धाम है। मुझे आशा है कि यहाँ के वातावरण का स्वस्थ प्रभाव पड़ेगा और हमारे इस सांझे प्रयास का फल रचनात्मक एवं और अधिक सार्थक होगा।

अध्यक्ष महोदय, मैं आपके यहाँ आये अन्य सभी राज्य तथा शासन प्रमुखों का कृतज्ञ हूँ जिन्होंने इस सम्मेलन को दो दिन के लिए स्थापित करने की हमारी प्रार्थना पर तत्काल ध्यान दिया। यह सकारात्मक पहल हमारे सहयोग की भावना की परिचायक है और यह भावना हम सब में बनी रहनी चाहिए।

हम मालदीव की स्वाधीनता में रजत जयंती वर्ष में मिल रहे हैं निःसंदेह मालवीय ने, राष्ट्रपति श्री गयूम के कुशल नेतृत्व में उल्लेखनीय प्रगति की है तथा यह वास्तव में गर्व की बात है कि यहाँ के लोग इसकी वर्षगांठ मना रहे हैं। हमें खुशी है कि हम अपने मित्रों, मालदीव के लोगों की खुशी में शामिल हो रहे हैं। इस अवसर पर हम मालदीव के लोगों को निरंतन प्रगति तथा समृद्धि की अपनी हार्दिक कामना को दोहराते हैं। सदस्य देशों की आपस की छोटी-मोटी कठिनाइयों के बावजूद सार्क अस्तित्व में आया। यद्यपि ये कठिनाइयाँ कुछ हद तक हमें बांध सी देती हैं, फिर भी सार्क के मौजूदा ढाँचे के अन्तर्गत किये जा रहे आपसी सहयोग एक ऐसा वातावरण बनाने में सहायक हो सकती है जिनसे कठिनाइयाँ दूर हो सकती हैं।

दक्षिण एशियाई देशों में आर्थिक सहयोग का अपना तार्किक आधार एवं अनिवार्यता है। सार्क का घोषणा पत्र बनाने वालों ने द्विपक्षीय समस्याओं के समाधान को आपसी सहयोग के लिए अनिवार्य न मानकर दूरदर्शिता और बुद्धिमानी का परिचय दिया है। अध्यक्ष महोदय, मैं इस बात पर बल देना चाहूँगा कि हम गरीबी, दरिद्रता और परेशानियों वाले क्षेत्र से हैं। यदि हम एक दूसरे से लड़ते रहे यदि हम राजनैतिक टकराव बनाये रखते रहे तो हम लोगों को गरीबी, दरिद्रता और परेशानियों से छुटकारा नहीं दिला पायेंगे। हमारी जिम्मेदारी अपनी जनता के प्रति है। हम यहाँ महज एक औपचारिकता, आपसी मनोरंजन के लिये नहीं मिल रहे हैं बल्कि हमें इस क्षेत्र के लोगों के भविष्य के प्रति चिन्ता है और यह हमारी जिम्मेदारी है। अध्यक्ष महोदय, क्या मैं आपसे एक व्यक्तिगत अनुरोध कर सकता हूँ- इस समय जब कि आप सार्क के अध्यक्ष हैं आपके नेतृत्व में एक नये युग का सूत्रपात होना चाहिए। सार्क की बैठक में महज राजनीतिक औपचारिकताओं का आदान- प्रदान नहीं होना चाहिए बल्कि हमें अपने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि केवल राजनयिक औपचारिकताओं से इस क्षेत्र के लोगों में नया भरोसा, नयी आशा और नया विश्वास नहीं आ सकता। अध्यक्ष महोदय, यह आपकी जिम्मेदारी है और मैं भारत की जनता और सरकार की ओर से आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हम इस महान प्रयास में आपको सहयोग देंगे। यदि औपचारिकताओं को सार्थक दिशा दी गयी तो उसमें हम सब लाभान्वित होंगे और वह दिशा है कि लोगों की समस्याओं को समझा जाये और उन्हें सुलझाने की कोशिश की जाये।

सार्क देशों के सदस्य विश्व में सबसे ज्यादा निर्धनों में से हैं विश्व के कुल गरीबों का लगभग 46 प्रतिशत दक्षिण एशिया में रहता है। दक्षिण एशिया का निर्यात विश्व के कुल निर्यात का 0.8 प्रतिशत है। दक्षिण एशियाई देशों की विदेशी मुद्रा का भंडार विश्व की विदेशी मुद्रा के भंडार का 0.7 प्रतिशत है। क्षेत्र के अधिकांश देशों का विदेशी व्यापार घाटे में चल रहा है। और उन पर विदेशी ऋण का बोझ बढ़ता जा रहा है तथा उस ऋण को चुकता करने में कठिनाइयाँ बढ़ रही हैं। हमारे देश के लोगों को निरक्षरता उन्मूलन, बीमारियों की रोकथाम, बच्चों की मौत से बचाव और उनके स्वस्थ विकास जैसी आम बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिये संघर्ष करना पड़ता है।

इसके साथ- साथ सार्क देश बहुत विशाल सम्पदा के स्वामी हैं। इनकी जनसंख्या एक अरब से भी अधिक है। इनके पास विश्व मानव शक्ति का विशालतम हिस्सा है एवं एक अच्छे आधारभूत ढांचे के साथ ही प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक स्रोत हैं। इस तरह सार्क सदस्य देशों में आर्थिक सहयोग के लिये सुदृढ़ आधार मौजूद हैं। अध्यक्ष महोदय, मानव शक्ति मानव जाति की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। यह हमारे पास प्रचुर मात्रा में है। प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है। अध्यक्ष महोदय, आपका देश इसका एक जीता- जागता उदाहरण है। प्रकृति ने हमें उपजाऊ जमीन दी है, सभी खनिज संसाधन दिये हैं और सुन्दर जलवायु बख्शी है फिर हमें मानव की सेवा के लिये प्रकृति के दोहन का प्रयास क्यों नहीं करना चाहिए? यह हमारी खेतों में काम करने वाली मेहनतकश जनता श्रमिकों और हमारे सभी लोगों के आर्थिक सहयोग से किया जा सकता है। इसके लिए आपको इस संगठन के माध्यम से एक नया नेतृत्व देना होगा और उनमें एक नया विश्वास पैदा करना होगा। उनमें एक नयी आशा दिलानी होगी कि उनकी मेहनत उनके बच्चों को एक नयी जिन्दगी देगी, उनके चेहरों पर प्रसन्नता लायेगी। उनका दुरुपयोग थोड़े से लोगों की भलाई के लिये नहीं किया जायेगा चाहे यह उनका अपना देश हो अथवा कोई अन्य देश।

अध्यक्ष महोदय, विश्व में उल्लेखनीय परिवर्तन हो रहे हैं। संसाधानों के लिये होड़ बढ़ रही है, यहाँ तक कि विकसित देश भी अपना तकनीकी नेतृत्व और स्पर्धात्मक पैनापन बनाये रखने के लिये अधिक एकीकरण की ओर बढ़ रहे हैं जैसे यूरोपीय समुदाय का और अधिक एकीकरण, कनाडा सांझा बाजार समझौता, पूर्वी यूरोपीय देशों की पश्चिमी यूरोप की आर्थिक धारा से मिलने की इच्छा तथा ए.पी.ई.सी. (एशिया, प्रशान्त आर्थिक सहयोग) का गठन, ये सब बातें इसी दिशा की ओर संकेत करती हैं। यह हमें सीख और चुनौती दोनों ही देते हैं। क्योंकि अन्य क्षेत्रों में बढ़ते हुए क्षेत्रीय सहयोग से हमारे लिये विकसित देशों के बाजारों में और उनकी वस्तुओं से अन्य बाजारों में प्रतिस्पर्धा करना और भी मुश्किल हो जायेगा। इसलिये मौजूदा विश्व के संदर्भ में दक्षिण एशियाई देशों में आर्थिक सहयोग बढ़ाना और भी आवश्यक है।

अध्यक्ष महोदय, मैं यह नहीं कहना चाहता कि हम उनके साथ ईष्र्या या द्वेष की भावना से होड़ कर रहे हैं किन्तु ये जीवन के कटु सत्य हैं। ये क्षेत्रीय असंतुलन, चाहे वे हमारे क्षेत्र में हो या अन्यत्र हों, संपूर्ण विश्व के सम्मुख समस्याएं पैदा करते जा रहे हैं। इन क्षेत्रीय असंतुलनों के बरकरार रहने से स्थायी शांति नहीं हो सकती तथा विश्व के विभिन्न देशों में आपसी सूझ- बूझ पैदा नहीं हो सकती। यह क्षेत्र जिसमें आपको और मुझे रहने का सौभाग्य मिला है, हजारों वर्ष की सभ्यता और संस्कृति का क्षेत्र है। हमने विश्व को शांति, भाई चारा और अहिंसा का संदेश दिया है तो फिर क्यों न हम विश्व को यह नया विचार दें कि केवल आपसी सद्भावना और शांति से ही हम समृद्ध हो सकते हैं और मानवता का भविष्य बेहतर बना सकते हैं।

अध्यक्ष महोदय, सार्क के देशों के मध्य सहयोग कम और सीमित है। हमने अपनी गतिविधियों और निश्चित रूप से एक- दूसरे के अनुभव से लाभ उठाया है और एक- दूसरे की जरूरतों तथा क्षमताओं के बारे में जागरूक हुए हैं। परन्तु सार्क की गतिविधियों का हमारे देशवासियों के जीवन पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई नहीं देता। हमारे लोगों के बीच कम आदान- प्रदान की प्रकृति जारी है। वास्तव में कुछ क्षेत्रों में तो हम पीछे हट रहे हैं। 1980 में 1987 तक सार्क देशों का आपसी आयात-निर्यात सार्क के विश्व व्यापार के प्रतिशत के संदर्भ में गिरकर क्रमशः 4.94 प्रतिशत से 2.98 प्रतिशत तथा 2.29 प्रतिशत से 1.39 प्रतिशत रह गया है।

हमारा सीमित तकनीकी और आधारभूत सहयोग हमारे लोगों की दिन प्रतिदिन की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पाया है। अभी भी हम विसंगति का सामना कर रहे हैं जिसमें कलकत्ता और खुलना या करांची और बम्बई के बीच भाड़े की दरें कलकत्ता-सिंगापुर या करांची और हांगकांग की भाड़े की दरों से ज्यादा हैं।

अध्यक्ष महोदय, क्या मैं यह जान सकता हूँ कि हम इसे ठीक क्यों नही कर सकते? क्या मैं बंगलादेश के राष्ट्रपति अथवा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से यह निवेदन कर सकता हूँ? ये वे क्षेत्र हैं जिनमें पारस्परिक सूझ-बूझ और आत्मीय सहयोग से हम इस क्षेत्र की स्थिति बदल सकते हैं। ये जीवन के कटु सत्य हैं। इनके लिये हमें कोई बहुत बड़ा प्रयास नहीं करना, सिर्फ मिल बैठकर उन्हें सुलझाना है।

अध्यक्ष महोदय, मैं कोई रहस्योद्घाटन नहीं कर रहा हूँ। अभी-अभी महामहिम बंगलादेश के राष्ट्रपति मुझे कह रहे थे कि सार्क की अधिकांश बैठक और शिखर सम्मेलन महज औपचारिक बनकर रह जाते हैं। क्यों न हम इस क्षेत्र के लोगों के मस्तिष्क को झकझोर रही समस्याओं को लेने का प्रयास करें और उनके समाधान पाने की कोशिश करें। अध्यक्ष महोदय, क्या मैं आपसे निवेदन कर सकता हूँ कि आप आने वाले वर्ष के लिये सार्क के नेता की हैसियत से काम- काज करने का एक नया तरीका शुरू करें, इस क्षेत्र के लोगों की समस्याओं से निपटने और इन शिखर सम्मेलनों को आयोजित करने के लिए नयी रूपरेखा तैयार करें।अध्यक्ष महोदय, सही मायने में एक कारगर उपाय यही होगा कि हम वस्तुओं के उत्पादन और सेवाओं तथा उनके आदान- प्रदान के क्षेत्रों में सहयोग करें, जिसका वास्तविक अर्थ व्यापार, उद्योग, ऊर्जा, धन और वित्त के क्षेत्रों में सहयोग करना है। यही संपूर्ण विश्व में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग का मूलभूत आधार रहा है। केवल वही क्षेत्रीय समुदाय सफल हुए हैं जिन्हें अपनी गतिविधियों में इन क्षेत्रों का सहयोग शामिल किया है और उनमें प्रगति की है।

यह बात समझ में आती है कि शुरू में हमने उन बातों पर जोर दिया है जिनसे विश्वास का वातावरण बनता है। परन्तु अब समय आ गया है कि हम सार्क के आर्थिक सहयोग को और अधिक महत्वाकांक्षी मार्ग की ओर बढ़ायें। इससे और अधिक नए और अच्छे अवसरों का मार्ग प्रशस्त होगा। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम इस क्षेत्र में अधिक तेजी से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन करने के अपने कर्तव्य से विमुख हो जायेंगे।

इस क्षेत्र के देशों में इस प्रकार से सहयोग होना चाहिए कि इसमें शामिल सभी देशों के सर्वोपरि हितों की रक्षा हो सके। हम इस उद्देश्य को कैसे प्राप्त करते हैं, वही हमारी संगठनात्मक क्षमता का सबूत होगा।

हम तीव्र तकनीकी प्रगति के युग में रह रहे हैं। उचित होगा कि सार्क देश उच्च प्रौद्योगिकी सहयोग के नए क्षेत्र की तलाश करें। जबकि प्रौद्योगिकी क्रान्ति के आगमन के साथ ही आनुवांशिक संसाधन मूल्यवान और विकास के लिए निर्णायक होते जा रहे हैं। कृषि अनुसंधान और पौधा बीजकरण कार्यक्रमों के लिए आनुवंशिक संसाधनों का होना आवश्यक है। इस प्रकार से ये विकासशील देशों में दीर्घावधि खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये संसाधन औषधियों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। दुर्भाग्य से दक्षिण एशियाई देशों सहित विकासशील देशों में उपलब्ध आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण के लिए तत्काल प्रयास करने की आवश्यकता है, विशेषकर हम आनुवंशिकी संरक्षण और प्रजनन जीवाणु बैंक के रख- रखाव की जानकारी के आदान- प्रदान करने का प्रस्ताव करते हैं। हम इस क्षेत्र में अपनी प्रशिक्षण सुविधाएं प्रदान करने के लिए तैयार हैं। हम विभिन्न सार्क देशों में भंडारित और उपलब्ध आनुवंशिकी संसाधनों के वर्गीकरण करने में सहयोग का भी प्रस्ताव करते हैं ताकि इनका आदान- प्रदान किया जा सके। पन्द्रह विकासशील देशों के समूह ने प्रस्ताव किया है कि विकासशील देशों के लिये एक जीन बैंक की स्थापना की जाये। मैं सार्क के अन्य देशों को भी, इसकी स्थापना हो जाने के बाद जल्दी से जल्दी इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

भविष्य में सहयोग बढ़ाने के लिये एक और कदम यह हो सकता है कि क्षेत्रीय परियोजनाओं के लिए एक कोष की स्थापना की जाये। कोष में परियोजनाओं का पता लगाने, उनका विकास करने और लघु क्षेत्र में परियोजनाओं को शुरू करने के लिए आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है। हम अपने राष्ट्रीय विकास बैंकूको के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को आपस में मिलने और इस उद्देश्य के लिए ध्ान उपलब्ध कराने की संस्थागत व्यवस्था पर विचार करने के लिए कह सकते हैं। धन मिलने के स्रोत पता लगाने तथा उन्हें संयुक्त परियोजनाओं से सम्बद्ध करने की रूपरेखा विशेषज्ञ स्तर पर तैयार की जा सकती है।

अध्यक्ष महोदय, मैं इस मुद्दे पर इसलिये जोर दे रहा हूँ क्योंकि कोई भी हमें, हमारी इन कठिनाइयों से छुटकारा नहीं दिला सकता। यदि हमें तरक्की करनी है और इस क्षेत्र को खुशहाल बनाना है तो हमें अपने पाँव पर खड़ा होना होगा और जितने भी अल्प संसाधन हमारे पास हैं उन्हें इकट्ठा करना होगा ताकि एक नये भरोसे, एक नये विश्वास के वातावरण की शुरुआत की जा सके। हमें अपने मतभेद भुला देने चाहिए, हमें नयी शुरुआत करनी चाहिए, यह न केवल हमारी वर्तमान समस्याओं को सुलझाने के लिये आवश्यक है बल्कि आने वाली पीढ़ी के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए भी जरूरी है। यह वक्त की मांग है और अध्यक्ष महोदय, यदि हम इस समय चूक गये तो यह न केवल इस निर्णायक घड़ी की असफलता होगी, बल्कि इसका अर्थ यह भी होगा कि हम इस क्षेत्र की आने वाली पीढ़ी की आकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रहे। यह क्षेत्र वर्षों से, शताब्दियों से, हमेशा- हमेशा से एक गौरवशाली क्षेत्र रहा है।

अध्यक्ष महोदय, सार्क ने क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा भंडार की स्थापना की थी परन्तु अभी तक कोई भी सदस्य देश इस सुरक्षित भंडार का उपयोग नहीं कर पाया है। हमें इस सुरक्षित खाद्य भंडार के स्तर और गुणवत्ता तथा इसके परिचालन के तरीकों का पुनरावलोकन करना चाहिये और ऐसे परिवर्तन करने चाहिये जिनसे सदस्य देशों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

हम उस अध्ययन को पूरा करने में एक साल पिछड़ गये हैं जिसे पूरा करने का हमने काठमांडू शिखर सम्मेलन में आदेश दिया था तथा जिसमें व्यापार और उद्योग तथा पर्यावरण की बर्बादी को रोकने के क्षेत्रों में सहयोग की बात कही गयी थी। पर्यावरण के लिए शीघ्र ही कदम उठाये जाने चाहिये। यह अध्ययन बिना और देरी किये पूरा किया जाना चाहिए तथा मंत्री परिषद् की अर्द्ध- वार्षिक बैठक से पर्याप्त समय पूर्व इस पर आधारित क्षेत्रीय सहयोग के लिये ब्ल्यू प्रिंट तैयार कर दिये जाने चाहिये। उन ब्लयू प्रिंटों को सार्क के अगले शिखर सम्मेलन में अंगीकार किया जा सकता है।

अध्यक्ष महोदय, काठमांडू में यह निर्णय लिया गया था और नेपाल के प्रधानमंत्री भी यहाँ हैं। नेपाल की पर्यावरण समस्याएँ हमें भी व्यापक रूप से प्रभावित करती है। अतः अध्यक्ष महोदय, क्या मैं आपके माध्यम से नेपाल के प्रधानमंत्री से निवेदन कर सकता हूँ कि वे नेपाल में पर्यावरण की सुरक्षा पर और अधिक ध्यान दें। यह कोई सलाह नहीं है। अपितु एक ऐसी सहायता है जो कि मैं उनसे मांग रहा हूँ क्योंकि भारत का पर्यावरण काफी हद तक नेपाल के पर्यावरण पर निर्भर करता है। बहुत पहले हमने यह निर्णय लिया था कि सार्क सदस्य देशों के बीच सांझी समस्याओं तथा अंतर्राष्ट्रीय, आर्थिक और पर्यावरण सम्बन्धी मसलों से निपटने की रणनीति पर मंत्री स्तर पर नियमित रूप से विचार- विमर्श होते रहना चाहिए। तेजी से बदलती विश्व की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में इस तरह का विचार- विमर्श और भी अधिक आवश्यक हो गया है। हम आशा करते हैं कि इस शिखर सम्मेलन के तुरन्त बाद विचार- विमर्श की यह प्रक्रिया भी शुरू हो जायेगी। हमें खुशी है कि मंत्री स्तर की बैठक की मेजबानी करने का हमारा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है।

अध्यक्ष महोदय, पाँच वर्ष पहले हमने जो यात्रा शुरू की थी, उससे बड़ी- बड़ी आशाएँ बधी थीं तब से क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता और भी बढ़ गयी है तथा सहयोग की सम्भावनाओं में भी वृद्धि हुई है। मुझे पूरी आशा है कि हम इस अवसर को हाथ से नहीं जाने देंगे तथा सार्क के अंतर्गत सहयोग को और गतिशील बनायेंगे।

अध्यक्ष महोदय, मैं जानता हूँ कि हमारी समस्याएँ बहुत हैं परन्तु हमारे पास संसाधन भी बहुत हैं। हमारे पास हजारों वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर है जो हमें एक बनाये रखती है। धार्मिक विश्वासों से भिन्नता होते हुए भी अभी इसमें आंच नहीं आयी है। भाषा की भिन्नता भी इसके रास्ते में नहीं आयी है। हमारी जनता ने शताब्दियों से अपनी इस गरिमा को बनाये रखा है। भले ही वर्तमान में कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न हों पर भविष्य हमें आशा का संदेश दे रहा है।

आइये! हम एक नई आशा के साथ आगे बढ़ें, परस्पर भरोसे के साथ, विश्वास के साथ और अपने लोगों की शक्ति के भरोसे पर आगे बढ़ें क्योंकि इसी पर इस क्षेत्र का और विश्व का भविष्य निर्भर करता है।