देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने एक बार कहा था कि चन्द्रशेखर जी किसी बड़ी पार्टी में हों या छोटी, बड़े पद पर हों या छोटे, इसका उतना महत्त्व नहीं है, जितना उनकी उपस्थिति का। उनकी उपस्थिति ही हमारी राजनीतिक व्यवस्था को स्थिरता प्रदान करती है। मैं यहाँ राजनीतिक व्यवस्था की बात कर रहा हूँ, राजनीति की नहीं। नरसिंह राव देश के सुलझे राजनेता थे, और उन्होंने नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में चन्द्रशेखर जी के 75वें जन्
अवसर था चन्द्र शेखर जी के पचहत्तरवें जन्म दिन का, दिल्ली के विज्ञान भवन में जो भव्य आयोजन उस दिन किया गया था सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी दिग्गज नेता वहाँ मौजूद थे। तत्कालीन प्रध्ाानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी से लेकर कई पूर्व प्रध्ाान मंत्री मंच की शोभा बढ़ा रहे थे। अटल जी ने अपनी चुटीली शैली में जब यह कहा कि ‘‘संसद में एक सत्तापक्ष है और एक विपक्ष है, परन्तु चन्द्रशेखर जी निष्पक्ष है’ तो सारा हाल कई मिनट तक तालियों से गूँ
चन्द्रशेखर: डायनामिक्स आॅफ चेंजु राजेन्द्र राठौड आजाद हिन्दुस्तान के महान चिन्तक और युवा तुर्क के रूप में विख्यात रहे राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर का भारतीय राजनीति में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर एक प्रखर मेधावी प्रवृत्ति के व्यक्तित्व थे। विधाता ने उन्हें अनेक योग्यताओं की सौगात प्रदान कर इस सृष्टि में भेजा था। आचार्य नरेंद्र देव जैसे मूधर्न्य चिन्तक और समाजवादी नेता के स
1962 में मैं प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर विध्ाानसभा का चुनाव लड़ा था तो श्री अशोक मेहता और श्री चन्द्रशेखर जी पार्टी के नेता थे। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से विध्ाायक बना तो वह काँग्रेस में युवा तुर्क के नाम से पुकारे जाते थे। वह काँग्रेस के प्रभावशाली नेता होने के बाद भी काँग्रेस के मंच से भी निर्बल, निधर््ान, मजदूर और किसान के हित की बात उठाते रहते थे। चन्द्रशेखर जी और उनके साथियों की क्रांतिकारी विचारध्ाारा
राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जी से मेरा माटी और बोली का वह अटूट रिश्ता है जो जन्म से प्रारम्भ होता है और मृत्यु के बाद भी नहीं टूटता है। आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व झोंक देने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों में रिश्तों का यह जुड़ाव आमतौर पर पाया जाता है। खासतौर से उन लोगों में थोड़ा अध्ािक पाया जाता है जो अपनी माटी से दूर माटी का दीप जलाए हुए हैं। इस रिश्ते में तब और वृद्धि होती है जब किसी अपनी माटी के सपूत के तेज से पूरा
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर क्षण भर में किसी को प्रभावित कर अपना बना लेने वाले उदार व्यक्तित्व के ध्ानी थे। वह सच्चाई व सादगी के प्रतीक और अपनी ध्ाुन के मतवाले थे। वह अखंड भारत को बांध्ाकर चलने वाले एक महान राष्ट्रीय पद यात्री के रूप में जाने जाते हैं। उनकी पदयात्रा महात्मा गाँध्ाी की पदयात्रा की याद को ताजा कर देती है। वह निर्भिक, स्वाभिमानी और अपनी वाक्यपटुता से जन समुदाय के मन को प्रभावित करने वाले नेताओं की श्र
देश के शिखर राजनेता और पूर्व प्रध्ाानमंत्री चन्द्रशेखर की संसदीय पारी लंबी रही। वे चार दशकों से अध्ािक तक भारत की संसद के सदस्य रहे और इस दौरान अपने भाषणों और कार्यकलापांे से संसदीय गरिमा को नयी बुलंदी प्रदान की। उनको उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से भी नवाजा गया। लेकिन उससे भी बड़ी बात यह रही कि वे स्वयं में एक संस्था थे जिन्होंने दलगत राजनीति से परे हट कर न जाने कितने युवा सांसदों को प्रखर और मुखर सांसद बनाने की ताकत दी। स
समाजवादी आन्दोलन के शीर्ष पंक्ति में शुमार और युवा तुर्क के रूप में जनप्रिय चन्द्रशेखर जी आम आवाम के प्रध्ाानमंत्री थे। भारत का संसदीय इतिहास उनकी चर्चा के बगैर अध्ाूरा रहेगा। वह भारतीय राजनीति का ऐसा चेहरा रहे हैं जिसकी स्मृति आज भी सार्वजनिक जीवन में विद्यमान है। उनके लिए समाजवाद केवल दार्शनिक अवध्ाारणा नहीं थी बल्कि जीवन जीने की एक ऐसी पद्धति थी जिसके माध्यम से राजनीति और समाज को निरंतर लोकोन्मुख बनाना था। अपन
ग्लोबल इकानामी के इस दौर में राजनीतिक संस्कृति बदल गयी है, भारत में हालांकि राजीव गाँध्ाी युग के अवतरण के साथ ही राजनीतिक संस्कृति बदलने लगी थी, ‘पालिटिक्स के कारपोरेटाइजेशन’ (काॅरपोरेट हाउसों की तर्ज पर विकसित कारपोरेट पालिटिकल कल्चर, जिसमें नेताओं, कार्यकर्ताओं के बीच अफसर-मालिक व मजदूर का रिश्ता होता है) के इस युग में चन्द्रशेखर अकेले थे। जो हजारों कार्यकर्ताओं को सीध्ो जानते थे, उनके बीच रहते थे। उनसे जीवंत संवा
आजाद भारत की वह अकेली शख्सियत जो आत्मबल, कर्मठता समर्पण और अपने जुझारूपन के कारण फर्श से अर्श वाली लोकोक्ति को चरितार्थ करते हुए बलिया के इब्राहिम पट्टी गाँव के गलियारों से निकल कर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बना, दुनिया उसे चन्द्रशेखर के नाम से जानती है। इस नाम के आगे न कोई विरासत में मिला तमगा था और न ही इसके पीछे क्षत्रिय होने का गुरूर था। चन्द्रशेखर जी अपने नाम के अनुरूप ही इस राजनीति में भ्रष्
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