यादों- विचारों में चन्द्रशेखर

चन्द्रशेखर: कभी न डूबने वाली किरण

कहा जाता है कि कुछ व्यक्तित्व इतिहास गढ़ता है और कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो इतिहास गढ़ते हैं। भारत के आठवें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर का व्यक्तित्व भी इतिहास गढ़ने वाले व्यक्तित्व की श्रेणी में आता है। इस बहुआयामी व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण आयाम था, दृढ़ता। उनकी संपूर्ण जीवन यात्रा इस दृढ़ता का बोध हर कदम पर होता है। इसके बल पर उन्होंने जब जो चाहा प्राप्त किया। जो नहीं पाया, उसके लिए जीवनपर्यंत प्रयास करते रहे।

यूवी सिंह

चन्द्रशेखर के सामने टूट जाते थे दलीय बंधन

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जब प्रधानमंत्री बने तो देश विषम परिस्थितियों से जूझ रहा था। लग रहा था कि इन समस्याओं की लपटें हमारे सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर देंगी लेकिन चन्द्रशेखर जी ने अपने अल्पकाल में ही इन लपटों को ठंडा कर दिया। उन्हें थोड़ा और अवसर मिला होता तो ये समस्याएँ भी विलुप्त हो गयी होतीं। उनका यह थोड़े दिनों का कार्यकाल यह बताने के लिए काफी है कि आपके भीतर संकल्प शक्ति है तो आप असंभव लग रहे लक्ष्य को भी स

उमेशधर द्विवेदी

चन्द्रशेखर: आमजन की खास आवाज़

एक कामरेड, एक शाश्वत विद्रोही-युवा तुर्क, एक सतत् पदयात्री, आम आदमी की खास आवाज, राष्ट्रीय विवेक की दो टूक अभिव्यक्ति, एक विचारक, एक संत, ....एक स्नेही बुजुर्ग जिसे गर्व से देखते हुए हम जवान और हमें जवान करता हुआ वो घर का बड़ा अमरत्व में लीन हुआ। अभी यह महत्वपूर्ण नहीं कि हम चन्द्रशेखर जी के अर्जुन, एकलव्य, अभिमन्यु क्या हैं, बल्कि महत्ता इस बात की है कि चन्द्रशेखर जी कभी भी एकलव्य का अंगूठा काटने वाले द्रोणाचार्य नहीं रहे। वो

मेजर डाॅ. हिमांशु

वह राष्ट्रपुरुष थे

चन्द्रशेखर जी के बारे में लिखना मेरे लिए आसान नहीं है, उनसे मेरा संबंध राजनीतिक नहीं व्यक्तिगत था। उनके स्नेह के वशीभूत मैं धीरे-धीरे उनके करीब गया। मैं मानवाध्ािकार कार्यकर्ता हूँ। मुझे याद है बलिया में ‘भूख से मौत’ पर हमारी बलिया इकाई ने ध्ारना और प्रदर्शन का आयोजन किया था। चन्द्रशेखर जी उस दिन बलिया में थे। उनको जब पता चला तो जिलाध्ािकारी कार्यालय पर आए और ध्ारने प्रदर्शन को संबोध्ाित भी किया। उन्होंने कहा कि अभ

चितरंजन सिंह

चन्द्रशेखर: बाहर से चट्टान और भीतर से फूल

चन्द्रशेखर को मैंने पहली बार करीब से देखा था 1972 में। वह सेंट एंड्रयूज कालेज, गोरखपुर के छासंघ के उद्घाटन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। सेंट एंड्रयूज कालेज के तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष आद्या दुबे के निमंत्रण पर मैं भी इस समारोह में शामिल हुआ था। यहीं चन्द्रशेखर जी को पहली बार सुना तो जाना कि शालीन शब्दों और छोटे-छोटे वाक्यों के बल पर भी गंभीर बातें ओजस्वी व प्रभावी तरीके से कहीं जा सकती हैं। केवल मेरे नहीं, मे

शीतल पाण्डेय

चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के प्रखर महानायक

भारतवर्ष में अनेक राजनेता आये एवं भारत के राजनीति पटल पर अपना प्रभाव छोड़ा, परन्तु चन्द्रशेखर जी के एक अलग व्यक्तित्व ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम एवं नई दिशा दी। चन्द्रशेखर जी का भारतीय राजनीति में अगर कोई स्थान आता है तो वह सरदार पटेल एवं नेहरू के समकक्ष का है। उन्होंने जिस निर्भीकता से अपनी बातें लोगों के सामने रखी हैं। वह शायद किसी सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं है। आजादी के एक वर्ष पहले की बात है यानी 1946 की। च

उमाशंकर

उनका गरिमामय स्नेह हमारे जीवन की अनमोल थाती

श्री चन्द्रशेखर जी से हमारी पहली सीधी मुलाकात बहुत रोचक रही। मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ जेल से रिहाई के बाद नयी दिल्ली में श्री मोरार जी भाई के आवास के बाहर हुई थी। वे हाल में जेल से छूट कर आए। हम लोग पहले ही छूट चुके थे। वे मोरार जी भाई से मिलकर उनके घर से पैदल ही आ रहे थे और हम व श्री सत्य प्रकाश मालवीय जी और श्री शतरुद्र प्रकाश भी पैदल ही माननीय मोरार जी भाई से मिलने उनके घर जा रहे थे। सड़क की पटरी पर ही उन्हों

अंजना प्रकाश

चन्द्रशेखर: सहज और विलक्षण प्रतिभा के धनी

चन्द्रशेखर भारतीय राजनीति के सरल, सहज और विलक्षण प्रतिभा वाले नेता थे। एक अमरीकी मनोवैज्ञानिक ने सही कहा था, चन्द्रशेखर का आध्ाा व्यक्तित्व राजनेता का है, आध्ाा संत का। उन्होंने अमेरीकी राष्ट्रपति रीगन क्लिंटन के साथ चन्द्रशेखर के प्रध्ाानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी। यूँ हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य प्रसाद द्विवेदी ने भी उनके प्रध्ाानमंत्री बनने का आशीर्वाद दिया था। इब्राहिम पट्टी से प्रध्ाानमंत्री ब

सुरेन्द्र प्रताप

समय के सूरमा: चन्द्रशेखर

नहीं फूलते कुसुम सिर्फ नहीं फूलते कुसुम सिर्फ नहीं फूलते कुसुम सिर्फ राजाओं के उपवन में। अमित बार फूलते कुंज से दूर कंुज - कानन में। समझे कौन रहस्य प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल। चुन चुन कर रखती है चुन चुन कर रखती है चुन चुन कर रखती है ध्ारती, बड़े अनोखे लाल। -दिनकर राष्ट्र कवि रामध्ाारी सिंह ‘दिनकर’ की उक्त पंक्तियाँ राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर जी पर पूर्णतया चरितार्थ होती हैं। अदम्य साहस के ध्ानी, कर्म निष्ठ, समाजवाद के पुरो

अरुणेश मिश्र

चन्द्रशेखर: साहस, शौर्य एवं संवेदना के प्रतीक

दिल्ली के कोटला रोड पर स्थित बाल भवन अपने में एक अनूठी तथा महत्वपूर्ण संस्था है। यहाँ 14 नवम्बर को प्रध्ाानमंत्री के आने की परम्परा अनेक दशकों तक चलती रही। 1990 में प्रध्ाानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी आमंत्रित किया गया। मैं तब बाल भवन सोसाइटी आॅफ इंडिया का अध्यक्ष था। प्रध्ाानमंत्री की स्वीकृति आ चुकी थी। मगर तभी सत्ता परिवर्तन हो गया। 10 नवम्बर 1990 को चन्द्रशेखर देश के प्रध्ाानमंत्री बने। असमंजस की स्थिति थी, फिर भ

जगमोहन सिंह राजपूत

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