यादों- विचारों में चन्द्रशेखर

बेमिसाल थे अध्यक्ष जी

चन्द्रशेखर जी यानी मेरे लिए अध्यक्ष जी। मैंने जीवन भर उन्हें अध्यक्ष जी के नाम से संबोध्ाित किया, क्योंकि मेरा सबसे पहली बार जब उनसे परिचय हुआ था तब वे जनता पार्टी के अध्यक्ष थे तथा अंत तक समाजवादी जनता पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। मैं ही नहीं देश के लाखों साथी उन्हें अध्यक्ष जी के नाम से संबोध्ाित किया करते थे। अध्यक्ष जी को लेकर मेरे दिमाग में जो विशेष स्मृतियाँ शेष हैं उनका उल्लेख करना चाहता हँू। उन्होंने देश भर में प

डाॅ. सुनीलम

सही मायने में राजनेता थे चन्द्रशेखर

समाजवादी नेता, देश के पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के बारे में पूरी किताब लिखी जा सकती है, वह वाकई हमारे पूर्वांचल की माटी में पैदा हुए सिद्धांतनिष्ठ ‘राष्ट्रपुरुष’ और उससे भी अध्ािक एक राजनेता (स्टेट्समैन) थे। उनके साथ हमारा जुड़ाव कई रूप में कई स्तरों पर था, एक पड़ोसी, पिता के मित्र, युवजन, राजनीतिक कार्यकर्ता और पत्रकार के रूप में भी हम उनके साथ जुड़े रहे, वह हमारे पड़ोसी थे, बलिया जिले में उनका पैतृक गाँव इब्राहिम प

जयशंकर गुप्त

चन्द्रशेखर: भारतीय राजनीति के शाश्वत विद्रोही

पूर्व प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर की ख्याति शाश्वत विद्रोही और जुझारू नेता के रूप में रही है। भारतीय राजनीति को नया मुहावरा देकर ही इस समाजवादी योद्धा ने अपनी अलग छवि बनायी। चन्द्रशेखर भारतीय राजनीति के फक्कड़ कबीर हैं। खरी-खरी कहने वाले। भले जो भी नुकसान उठाना पड़े। प्रखर समाजवादी-राजनीतिक चिंतक के अलावा चन्द्रशेखर समर्थ गद्यकार और पत्रकार भी थे। उनका यह रूप भारतीय राजनीति और समाज पर नियमित रूप से ‘यंग इंडियन’

कृपाशंकर चैबे

चन्द्रशेखर: ‘एकला चलो रे’ के पथिक

चन्द्रशेखर का जीवन विभिन्नता में बीता था। वे एक अत्यंत पिछड़े किन्तु संघर्षशील इलाके के गरीब घर में जन्मे थे, किन्तु अपने संघर्ष, अध्यवसाय, लगन और ईमानदारी के बल पर भारत के सर्वोच्च स्थान पर पहुँचे थे। उन्होंने अपना राजनैतिक जीवन बलिया में एक छात्रनेता के रूप में शुरू किया। इलाहाबाद से राजनीति शास्त्र में एम.ए. किया। वहीं उनकी मुलाकात समाजवादी दल के अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव से हुई और आचार्य जी ने उन्हें समाजवाद के

मिथिलेश कुमार सिंह

सिद्धान्तों की निष्ठा के लिए हमेशा याद किए जाएंगे

मैं आज अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा हँ कि चन्द्रशेखर जैसे अद्वितीय व्यक्ति से मेरा घनिष्ठ संबंध्ा रहा और बहुत नजदीकी से देखने और एक लम्बे समय तक सामाजिक व राजनीति क्षेत्र में काम करने का मौका मिला। सही मायने में मैं चन्द्रशेखर जी के विचारों से छात्र जीवन से युवा तक प्रभावित था और जब बिहार में 1974 में छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और जयप्रकाश नारायण ने छात्र आन्दोलन को एक नया आयाम दिया तो चन्द्रशेखर जी काँग्रेस के कार्यसमित

वशिष्ट नारायण सिंह

चन्द्रशेखर: दिशाबोधक राजनीति के दस्तावेज

चन्द्रशेखर जी के सम्बन्ध में लिखना जितना आसान है, उतना ही कठिन। भारत के राजनीतिक क्षितिज पर चन्द्रशेखर जी जैसा व्यक्तित्व कभी-कभी उभरता है और संघर्ष से सत्ता के शीर्ष पद तक पहुँच कर अपनी एक अलग पहचान बनाता है। उनके जीवन का वामय, समाजवादी चिंतन धारा को यथार्थ जामा पहनाने में कभी-कभी अकेले हो जाना, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में दलीय प्रतिबद्धता के विपरीत खड़ा होना, विषम परिस्थिति में भी अपने विचारों पर अडिग रहना, छात्

ओमप्रकाश

भारतीय राजनीति का अकेला किसान चेहरा

भरी दोपहरी थी। मैं कहीं बाहर से लौटा तो मैंने दो ध्ाुले-ध्ाुले आदमियों को अपने बरामदे में बैठे हुए पाया। मैंने स्कूटर बरामदे में चढ़ाया तो दोनों उठ कर खड़े हो गये। उन्होंने हाथ जोड़े तो मैंने सिर हिला कर उनके नमस्कार का जवाब दिया। ‘कहिए।’ मैंने पूछा। ‘कल हम आपको ले जायेंगे।’ उन्होंने बिना किसी लाग-लपेट के कहा। मैं चुप। कुछ खिसियाया हुआ-सा। ‘पूर्व प्रध्ाानमंत्री जी का आदेश है।’ उन्होंने कहा। ‘कौन पूर्व प्रध्ाानमंत्र

दूधनाथ सिंह

राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर

बचपन में गाँव की चैपाल में लोग अक्सर राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर के बारे में चर्चा करते थे। खासतौर से 1967-68 में तो इन जनचर्चाओं के केन्द्र में केवल वही रहते थे। मेरे परिजन और आसपास के लोग यह कहते नहीं अघाते थे कि काँग्रेस में शामिल होने के बाद भी समाजवादी चन्द्रशेखर में कोई बदलाव नहीं आया है। वह अकेले देश की सियासत में पूँजीपतियों के बढ़ रहे प्रभाव को रोकने के लिए भिड़े हुए हैं। उनकी वजह से बिरला की नहीं चल पा रही है। उन्होंने

यशवंत सिंह

सदी का महान सपूत: चन्द्रशेखर

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदवर पैदा संसार में लाखों लोगों का जन्म होता है और लाखों लोग इस संसार से चले जाते हैं, किन्तु करोड़ों लोगों में दो-एक ही ऐसे होते हैं जो अपने पीछे ऐसी यादें छोड़ जाते हैं जिन्हें न केवल देश के लोग याद करते हें, वरन् सारा संसार उनके कमों को याद करता है बल्कि विश्व इतिहास

अहसन अंसारी

जमाने से पंजा लड़ा, राह बनाने वाला वाहिद आदमी

अंग्रेजों के जाने के बाद चन्द्रशेखर जी अकेले ऐसे आदमी हुए हैं जो न तो किसी राजा या नेता के घर पैदा हुए, न ही कभी बड़े पूँजीपतियों ने उन्हें अपने काम का आदमी समझ कर उन पर अपनी दौलत लुटायी और न ही कभी वह जमाने के पीछे चले। उन्होंने जमाने की आंख में आंख डाल कर और उससे पंजा लड़ा कर अपनी राह बनायी। मुझे याद है, जिस समय श्रीमती इन्दिरा गाँध्ाी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए आपात्काल लगा कर पूरे देश को एक बड़े जेल में बदल दिया था, उस समय

इलियास आज़मी

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